महाभारत आदि पर्व अध्याय 122 श्लोक 14-24

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द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यलधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 14-24 का हिन्दी अनुवाद

वायुदेव से भयंकर पराक्रमी महाबाहु भीम का जन्‍म हुआ । जनमेजय ! उस महाबली पुत्र को लक्ष्‍य करके आकाशवाणी ने कहा- यह कुमार समस्‍त बलवानों में श्रेष्ठ है। भीमसेन के जन्‍म लेते ही एक अद्भुत घटना यह हुई कि अपनी माता की गोद से गिरने पर उन्‍होंने अपने अंगों से एक पर्वत की चट्टान को चूर-चूर कर दिया। बात यह थी कि यदुकुल नन्‍दनी कुन्‍ती प्रसव के दसवें दिन पुत्र को गोद में लिये उसके साथ एक सुन्‍दर सरोवर के निकट गयी और स्‍नान करके लौटकर देवताओं की पूजा करने के लिये कुटिया से बाहर निकली। भरतनन्‍दन ! वह पर्वत के समीप होकर जा रही थी कि इतने में ही उसको मार डालने की इच्‍छा से एक बहुत बड़ा व्‍याघ्र उस पर्वत की कन्‍दरा से बाहर निकल आया। देवताओं के समान पराक्रमी कुरुश्रेष्ठ पाण्‍डु ने उस व्‍याघ्र को दौड़कर आते देख धनुष खींच लिया और तीन बाणों से मारकर उसे विदीर्ण कर दिया। उस समय वह अपनी विकट गर्जना से पर्वत की सारी गुफा का प्रतिध्‍वनित कर रहा था। कुन्‍ती बाघ के भय से सहसा उछल पड़ी । उस समय उसे इस बात का ध्‍यान नहीं रहा कि मेरी गोदी में भीमसेन सोया हुआ है। उतावले में वह वज्र के समान शरीर वाला कुमार पर्वत के शिखर पर गिर पड़ा । गिरते समय उसने अपने अंगों से उस पर्वत की शिला को चूर्ण-विचूर्ण कर दिया। पत्थर की चट्टान को चूर-चूर हुआ देख महाराज पाण्‍डु बड़े आश्चर्य में पड़ गये । जब चन्‍द्रमा मवा नक्षत्र पर विराजमान थे, बृहस्‍पति सिंह लग्न में सुशोभित थे, सूर्यदेव दोपहर के समय आकाश के मध्‍य भाग में तप रहे थे, उस समय पुण्‍यमयी त्रयोदशी तिथी को मैत्र मुहूर्त में कुन्‍ती देवी ने अविचल शक्ति वाले भीमसेन को जन्‍म दिया था। भरतश्रेष्ठ भूपाल ! जिस दिन भीमसेन का जन्‍म हुआ था, उसी दिन हस्तिनापुर में दुर्योधन की भी उत्‍पत्ति हुई । भीमसेन के जन्‍म लेने पर पाण्‍डु ने फि‍र इस प्रकार विचार किया कि मैं कौनसा उपाय करूं, जिससे मुझे सब लोगों से श्रेष्ठ उत्तम पुत्र प्राप्त हो । यह संसार दैव तथा पुरूषार्थ पर अबलम्बित है। इनमें दैव तभी सुलभ ( सफल ) होता है, जब समय पर उद्योग किया जाय । मैंने सुना है कि देवराज इन्‍द्र ही सब देवताओं में प्रधान हैं, उनमें अथाह बल और उत्‍साह है। वे बड़े पराक्रमी एवं अपार तेजस्‍वी हैं। मैं तपस्‍या द्वारा उन्‍हीं को संतुष्ट करके महाबली पुत्र प्राप्त करूंगा । वे मुझे जो पुत्र देंगे, वह निश्चय ही सबसे श्रेष्ठ होगा तथा संग्राम में अपना सामना करने वाले मनुष्‍यों तथा मनुष्‍येतर प्राणियों (दैत्‍य-दानव आदि ) को भी मारने में समर्थ होगा। अत: मैं मन, वाणी और क्रिया द्वारा बड़ी भारी तपस्‍या करूंगा ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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