महाभारत आदि पर्व अध्याय 122 श्लोक 44-70
द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
यह युद्ध में देवाधिदेव भगवान् शंकर को संतुष्ट करेगा और संतुष्ट हुए उन महेश्वर से पाशुपत नामक अस्त्र प्राप्त करेगा। निवात कवच नामक दैत्य देवताओं से सदा द्वैष रखते हैं, तुम्हारा यह महाबाहु पुत्र इन्द्र की आज्ञा से उन सब दैत्यों का संहार कर डालेगा । तथा पुरुषों में श्रेष्ठ यह अर्जुन सम्पूर्ण दिव्यास्त्रों का पूर्ण रुप से ज्ञान प्राप्त करेगा और अपनी खोयी हुई सम्पत्ति को पुन: वापस ले आयेगा । कुन्ती ने सौरी में से ही यह अत्यन्त अद्भुत बात सुनी। उच्चस्वर में उच्चारित वह आकाशवाणी सुनकर शतश्रृंग निवासी तपस्वी मुनियों तथा विमानों पर स्थित इन्द्र आदि देवसमूहों को बड़ा हर्ष हुआ । फिर झुंड-के-झुंड देवता वहां एकत्र होकर अर्जुन की प्रशंसा करने लगे। कद्रू के पुत्र (नाग), निताक के पुत्र (गरुड़ पक्षी), गन्धर्व, अप्सराऐं, प्रजापति, सप्तर्षिगण- भरद्वाज, कश्यप, गौतम, विश्वामित्र, जगदग्नि, वसिष्ठ तथा जो नक्षत्र के रुप में सर्यास्त होने के पश्चात् उदित होते हैं, वे भगवान् अत्रि भी वहां आये मरीचि और अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु एवं प्रजापति दक्ष, गन्धर्व तथा अप्सराऐं भी आयीं । उन सबने दिव्य हार और दिव्य वस्त्र धारण कर रक्खे थे। वे सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित थे। अप्सराओं का पूरा दल वहां जुट गया था। वे सभी अर्जुन के गुण गाने और नृत्य करने लगीं । महर्षि वहां सब ओर खड़े होकर मांगलिक मन्त्रों को जप करने लगे। गन्धर्वों के साथ श्रीमान तुम्बुरु ने मधुर स्वर गीत गाना प्रारम्भ किया । भीमसेन तथा उग्रसेन, ऊर्णायु और अनघ, गोपति एवं धृतराष्ट्र, सूर्यवर्चा, तथा आठवें युगप, तृणप, कार्ष्णि,नन्दि एवं चित्ररथ, तेरहवें शालिशिरा और चौदहवें पर्जन्य, पंद्रहवें कलि और सोलहवें नारद, ॠवा और बृहत्वा, बृहक एवं महामना कराल, ब्रह्मचारी तथा विख्यात गुणवान् सुवर्ण, विश्वावसु एवं भुमन्यु, सुचन्द्र और शरु तथा गीत माधुर्य से सम्पन्न सुविख्यात हाहा और हुहु- राजन् ! ये सब देव गन्धर्व वहां पधारे थे । इसी प्रकार समस्त आभूषणों से विभूषित बडे़-बड़े नेत्रों वाली परम सौभाग्यशालिनी अप्सराऐं भी हर्षोल्लास में भरकर वहां नृत्य करने लगीं । उनके नाम इस प्रकार हैं- अनूचाना और अनवद्या, गुणमुख्या एवं गुणावरा, अद्रिका तथा सोमा, मिश्रकेशी और अलम्बुषा, मरीचि और शुचिका, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अम्बिका, लक्षणा, क्षेमा,देवी, रम्भा, मनोरमा, असिता और सुबाहु, सुप्रिया एवं वपु, पुण्डरीका एवं सुगन्धा, सुरसा और प्रमाथिनी, काम्या तथा शारद्वती आदि। ये झुंड-की झुंड अप्सराऐं नाचने लगीं। इनमें मेनका, सहजन्या, कर्णिका और पुञ्जिकस्थला, ॠतुस्थला एवं घृताची, विश्वाची और पूर्वचित्ति, उम्लोचा और प्रम्लोचा- ये दस विख्यात हैं । इन्हीं प्रधान अप्सराओं की श्रेणी में ग्यारहवीं उर्वशी है। ये सभी विशाल नेत्रों वाली सुन्दरियां वहां गीत गाने लगीं। धाता और अर्यमा, मित्र और वरुण, अंश एवं भग, इन्द्र, विवस्वान् और पूषा, त्वष्टा एवं सविता, पर्जन्य तथा विष्णु- ये बारह आदित्य माने गये हैं। ये सभी पाण्डुनन्दन अर्जुन का महत्व बढ़ाते हुए आकाश में खड़े थे । शत्रुदमन महाराज ! मृगव्याघ और सर्प, महायशस्वी निर्ॠति एवं अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य और पिनाकी, दहन तथा ईश्वर, कपाली एवं स्थाणु तथा भगवान् भग– ये ग्यारह रुद्र भी वहां आकाश में आकर खड़े थे । दोनों अश्विनी कुमार तथा आठों वसु, महाबली मरुद्रण एवं विश्वेदेवगण तथा साध्यगण वहां सब ओर विद्यमान थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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