महाभारत आदि पर्व अध्याय 128 श्लोक 39-43

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>अष्टाविंशत्यधिकशततम (128 ) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: > अष्टाविंशत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 39-43 का हिन्दी अनुवाद

यद्यपि वह विष बड़ा तेज था, तो भी उनके लिये कोई बिगाड़ न कर सका। भयंकर शरीर वाले भीमसेन के उदर में वृक नाम की अग्नि थी; अत: वहां जाकर यह विष पच गया । इस प्रकार दुर्योधन, कर्ण तथा सुबलपुत्र शकुनि अनेक उपायों द्वारा पाण्‍डवों को मार डालना चाहते थे । पाण्‍डव भी यह सब जान लेते और क्रोध में भर जाते थे, तो भी विदुर की राय के अनुसार चलने के कारण अपने अमर्ष को प्रकट नहीं करते थे । राजा धृतराष्ट्र ने उन कुमारों को खेल-कूद में लगे रहने से अत्‍यन्‍त उद्दण्‍ड होते देख उन्‍हें शिक्षा देने के लिये गौतम गोत्रिय कृपाचार्य की खोज करायी, जो सरकंडे के समूह से उत्‍पन्न हुए और विविध शास्त्रों के पारंगत विद्वान् थे। उन्‍हीं को गुरु बनाकर कुरुकुल के उन सभी कुमारों को उन्‍हें सौंप दिया गया; फिर वे कुरुवंशी बालक कृपाचार्य से धनुर्वेद का अध्‍ययन करने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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