महाभारत आदि पर्व अध्याय 137 श्लोक 1-18
सप्तत्रिंशदधिकशततम (137) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
द्रोण का शिष्यों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण करवाना, अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना और द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त कर देना वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! पाण्डवों तथा धृतराष्ट्र के पुत्रों को अस्त्र-विद्या में निपुण देख द्रोणाचार्य ने गुरु-दक्षिणा लेने का समय आया जान मन-ही-मन कुछ निश्चय किया । जनमेजय ! तदनन्तर आचार्य ने अपने शिष्यों को बुलाकर उन सबसे गुरूदक्षिणा के लिये इस प्रकार कहा- । ‘शिष्यो ! पाञ्चालराज द्रुपद को युद्ध में कैद करके मेरे पास ले आओ। तुम्हारा कल्याण हो। यही मेरे लिये सर्वोत्तम गुरुदक्षिणा होगी’ । तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर शीघ्रता पूर्वक प्रहार करने वाले वे सब राजकुमार (युद्ध के लिये उद्यत हो) रथों में बैठकर गुरुदक्षिणा चुकाने के लिये आचार्य द्रोण के साथ ही वहां से प्रस्थित हुए । तदनन्तर दुर्योधन, कर्ण, महाबली युयुत्सु, दु:शासन, विकर्ण, जलसंघ तथा सुलोचन- ये और दूसरे भी बहुत से महापराक्रमी नरश्रेष्ठ क्षत्रिय शिरोमणि राजकुमार ‘पहले मैं युद्ध करूंगा, पहले मैं युद्ध करूंगा’ इस प्रकार कहते हुए पञ्चाल देश में जा पहुंचे और वहां के निवासियों को मारते-पीटते हुए महाबली राजा द्रुपद की राजधानी को भी रौंदने लगे। उत्तम रथों पर बैठे हुए वे सभी राजकुमार घुड़सवारों के साथ नगर में घुसकर वहां के राजपथ पर चलने लगे । जनमेजय ! उस समय पञ्चालराज द्रुपद कौरवों का आक्रमण सुनकर और उनकी विशाल सेना को अपनी आंखों देखकर बड़ी उतावली के साथ भाइयों सहित राजभवन से बाहर निकले । महाराज यज्ञसेन (द्रुपद) और उनके सब भाइयों ने कवच धारण किये। फिर वे सभी लोग बाणों की बौछार करते हुए जोर-जोर से गर्जना करने लगे । राजा द्रुपद को युद्ध में जीतना बहुत कठिन था। वे चमकीले रथपर सवार हो कौरवों के सामने जा पहुंचे और भयानक बाणों की वर्षा करने लगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! कौरवों तथा अन्य राजकुमारों को अपने बल और पराक्रम का घमंड था; इसलिये अर्जुन ने पहले ही अच्छी तरह सलाह करे विप्रवर द्राणाचार्य से कहा- । ‘गुरुदेव ! इनके पराक्रम दिखाने के पश्चात् हम लोग युद्ध करेंगे। हमारा विश्वास है, ये लोग युद्ध में पञ्चालराज को बंदी नहीं बना सकते’ । यों कहकर पाप रहित कुन्तीनन्दन अर्जुन अपने भाइयों से साथ नगर से बाहर ही आधे कोस की दूरी पर ठहर गये थे । राजा द्रुपद ने कौरवों को देखकर उन पर सब ओर से धावा बोल दिया और बाणों का बड़ा भारी जाल-सा बिछाकर कौरव सेना को मूर्छित कर दिया। युद्ध में फुर्ती दिखाने वाले राजा द्रुपद रथ पर बैठकर यद्यपि अकेले ही बाण वर्षा कर रहे थे, तो भी अत्यन्त भय के कारण कौरव उन्हें अनेक-सा मानने लगे । द्रुपद के भयंकर बाण सब दिशाओं में विचरने लगे। महाराज ! उनकी विजय होती देख पाञ्चालों के घर में शंक, भेरी और मृदंग आदि सहस्त्रों बाजे एक साथ बज उठे। महान् आत्मबल से सम्पन्न पाञ्चाल सैनिकों का सिंहनाद बड़े जोरों से होने लगा। साथ ही उनके धनुषों की प्रत्यञ्चाओं का महान टंकार आकाश में फैलकर गूंजने लगा
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