महाभारत आदि पर्व अध्याय 138 श्लोक 16-27
अष्टात्रिंशदधिकशततम (138) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
इस प्रकार समुद्र पर्यन्त पृथ्वी पर सब ओर अपने आप ही यह बात फैल गयी कि संसार में अर्जुन के समान दूसरा कोई धनुर्धर नहीं है । पाण्डुनन्दन धनंजय गदा, खड्ग, रथ तथा धनुष द्वारा युद्ध करने की कला में पारंगत हुए । सहदेव भी उस समय द्रोण के रूप में अवतीर्ण देवताओं के आचार्य बृहस्पति से सम्पूर्ण नीतिशास्त्र की शिक्षा पाकर नीतिमान् हो अपने भाइयों के अधीन (अनुकूल) होकर रहते थे। नकुल ने भी द्रोणचार्य से ही अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा पायी थी। वे अपने भाइयों को बहुत ही प्रिय थे और विचित्र प्रकार से युद्ध करने में उनकी बड़ी ख्याति थी वीर कहे जाते थे । सौवीर देश का राजा, जो गन्धर्वों के उपद्रव करने पर भी लगातार तीन वर्षों तक बिना किसी विघ्न-वाधा के यज्ञों का अनुष्ठान करता रहा, युद्ध में अर्जुन आदि पाण्डवों के हाथों मारा गया। पराक्रमी राजा पाण्डु भी जिसे वश में न ला सके थे, उस यवनदेश (यूनान) के राजा को भी जीतकर अर्जुन ने अपने अधीन कर लिया । जो अत्यन्त बली तथा कौरवों के प्रति सदा अभिमान एवं उद्दण्डता पूर्ण बर्ताव करने वाला था, वह सौवीर भूमि में मारा गया। जो सदा युद्ध के लिये दृढ़ संकल्प किये रहता था, जिसे लोग दत्तामित्र के नाम से जानते थे, उस सौवीर निवासी सुमित्र का भी अर्जुन ने अपने बाणों से दमन कर दिया । इसके सिवा अर्जुन ने केवल भीमसेन की सहायता से एकमात्र रथ पर आरूढ़ हो युद्ध में पूर्व दिशा के सम्पूर्ण योद्धाओं तथा दस हजार रथियों को जीत लिया । इसी प्रकार एक मात्र रथ से यात्रा करके धनंजय ने दक्षिण दिशा पर विजय पायी और अपने ‘धनंजय’ नाम को सार्थक करते हुए कुरुदेश की राजधानी में धन की राशि पहुंचायी । जनमेजय ! इस तरह नरश्रेष्ठ महामना पाण्डवों ने प्राचीन काल में दूसरे राष्ट्रों को जीतकर अपने राष्ट्र की अभिवृद्धि की । तब दृढ़तापूर्वक धनुष धारण करने वाले पाण्डवों के अत्यन्त विख्यात बल-पराक्रम की बात जानकर उनके प्रति राजा धृतराष्ट्र का भाव दूषित हो गया। अत्यन्त चिन्ता मं निमग्न हो जाने के कारण उन्हें रात में नींद नहीं आती थी ।
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