महाभारत आदि पर्व अध्याय 163 श्लोक 1-21
त्रिषष्टयधिकशततम (163) अध्याय: आदि पर्व (बकवध पर्व )
बकासुर के वध से राक्षसों का भयभीत होकर पलायन और नगर निवासियों की प्रसन्नता
वैशम्पायनजी कहते है- राजन् ! पसली की हड्डियों के टूट जाने पर पर्वत के समान विशालकाय बकासुर भयंकर चीत्कार करके प्राणरहित हो गया। जनमेजय ! उस चीत्कार से भयभीत हो उस राक्षस के परिवार के लोग अपने सेवकों के साथ घर से बाहर निकल आये। योद्धाओं में श्रेष्ठ बलवान् भीमसेन ने उन्हें भय से अचेत देखकर ढाढ़स बंधाया और उनसे यह शर्त करा ली कि ‘अब से कभी तुम लोग मनुष्यों की हिंसा न करना।जो हिंसा करेंगे, उनका शीघ्र ही इसी प्रकार वध कर दिया जायगा’। भारत ! भीम की यह बात सुनकर उन राक्षसों ने ‘एवमस्तु’ कहकर वह शर्त स्वीकार कर ली। भारत ! तब से नगर निवासी मनुष्यों ने अपने नगर में राक्षसों को बड़े सौम्य स्वभाव का देखा। तदनन्तर भीमसेन ने उस राक्षस की लाश उठाकर नगर के दरवाजे पर गिरा दी और स्वयं दूसरों की दृष्टि से अपने को बचाते हुए चले गये। भीमसेन के बल से बकासुर को पछाड़ा एवं मारा गया देख उस राक्षस के कुटुम्बीजन भय से व्याकुल ही इधर-उधर भाग गये। उस राक्षस को मारने के पश्चात् भीमसेन ब्राह्मण के उसी घर में गये तथा वहां उन्होंने राजा युधिष्ठिर से सारा वृत्तान्त ठीक-ठीक कह सुनाया। तत्पश्चात् जब सबेरा हुआ और लोग नगर से बाहर निकले, तब उन्होंने बकासुर खून से लथपथ हो पृथ्वी पर मरा पड़ा है। पर्वत शिखर के समान भयानक उस राक्षस को नगर के दरवाजे पर फेंका हुआ देखकर नगर निवासी मनुष्यों के शरीर में रोमाञ्च हो आया। राजन् ! उन्होंने एक चक्रा नगरी में जाकर नगरभर में यह समाचार फैला दिया; फिर तो हजारों नगर निवासी मनुष्य स्त्री, बच्चों और बूढ़ो के साथ बकासुर को देखने के लिये वहां आये। उस समय वह अमानुषिक कर्म देखकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। जनमेजय ! उन सभी लोगों ने देवताओं की पूजा की। इसके बाद उन्होंने यह जानने के लिये कि आज भोजन पहुंचाने की किसकी बारी थी, दिन आदि की गणना की। फिर उस ब्राह्मण की बारी का पता लगने पर सब लोग उसके पास आकर पूछने लगे। इस प्रकार उनके बार-बार पूछने पर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने पाण्डवों को गुप्त रखते हुए समस्त नागरिकों से इस प्रकार कहा- ‘कल जब मुझे भोजन पहुंचाने की आज्ञा मिली, उस समय मैं अपने बन्धुजनों के साथ रो रहा था। इस दशा में मुझे एक विशाल हृदयवाले मन्त्रसिद्ध ब्राह्मण ने देखा। ‘देखकर उन श्रेष्ठ ब्राह्मण देवता ने पहले मुझसे सम्पूर्ण नगर के कष्ट का कारण पूछा। इसके बाद अपनी अलौकिक शक्ति का विश्वास दिलाकर हंसते हुए से कहा- ‘ब्रह्मन् ! आज मैं स्वयं ही उस दुरात्मा राक्षस के लिये भोजन ले जाऊंगा। ‘उन्होंने यह भी बताया कि ‘आपको मेरे लिये भय नहीं करना चाहिये’। ‘वे वह भोजन-सामग्री लेकर बकासुर के वन की ओर गये। अवश्य ही उन्होंने ही यह लोक-हितकारी कर्म किया होगा’। तब तो वे सब ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र आश्चर्यचकित हो आनन्द में निमग्न हो गये।उस समय उन्होंने ब्राह्मणों के उपलक्ष्य में महान् उत्सव मनाया। इसके बाद उस अद्रुत घटना को देखने के लिये जनपद में रहनेवाले सब लोग नगर में आये और पाण्डव लोग भी (पूर्ववत्) वहीं निवास करने लगे ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत बकवधपर्व में बकासुरवध विषयक एक सौ तिरसठवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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