महाभारत आदि पर्व अध्याय 189 श्लोक 17-35

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोननवत्‍यधिकशततम (189) अध्‍याय: आदि पर्व (स्‍वयंवर पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: एकोननवत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 17-35 का हिन्दी अनुवाद

विप्रशिरोमणे ! आप मूर्तिमान् धनुर्वेद हैं ? या परशुराम ! अथवा आप स्‍वयं इन्‍द्र या अपनी महिमा से कभी च्‍युत न होनेवाले साक्षात् भगवान् विष्‍णु हैं ? मैं समझता हूं, आप इन्‍हीं में से कोई हैं और अपने स्‍वरुप को छिपाने के लिये यह ब्राह्मणवेष धारण करके बाहुबल का आश्रय ले मेरे साथ युद्ध कर रहे हैं। क्‍योंकि युद्ध में मेरे कुपित होने पर साक्षात् शचीपति इन्‍द्र अथवा किरीटधारी पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन के अतिरिक्‍त दूसरा कोई मेरा सामना नहीं कर सकता। कर्ण के ऐसा कहने पर अर्जुन ने उसे इस प्रकार उत्‍तर दिया-‘कर्ण ! न तो मैं धनुर्वेद हूं और न प्रतापी परशुराम ।। ‘मैं तो सम्‍पूर्ण शस्‍त्रधारियों में उत्‍तम और योद्धाओं में श्रेष्‍ठ एक ब्राह्मण हूं। गुरु का उपदेश पाकर ब्रह्मास्‍त्र तथा इन्‍द्रास्‍त्र दोनों में पारंगत हो गया हूं। वीर ! आज मैं तुम्‍हें युद्ध में जीतने के लिये खड़ा हूं, तुम भी स्थिरतापूर्वक खड़े रहो’।

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! अर्जुन की यह बात सुनकर महारथी कर्ण ब्राह्मतेज को अजेय मानते हुआ उस समय युद्ध छोड़कर हट गया। इसी समय दूसरे स्‍थान को अपना रणक्षेत्र बनाकर वहीं बलवान् वीर शल्‍य और भीमसेन एक दूसरे को ललकारते हुए दो मतवाले गजराजों की भांति युद्ध कर रहे थे। दोनों ही विद्या, बल और युद्ध की कला से सम्‍पन्‍न थे। वे घूंसों और घुटनों से एक दूसरे को मारने लगे। दोनों एक दूसरे को दूर तक ठेल ले जाते, नीचे गिराने का प्रयत्‍न करते, कभी अपनी ओर खीचतें और कभी अगल-बगल से पैंतरे देकर गिराने की चेष्‍टा करते थे। इस प्रकार वे एक दूसरे को खींचते और मुक्‍कों से मारते थे। उस समय घूंसों की मार से दोनों के शरीरों पर अत्‍यन्‍त भयंकर ‘चट-चट’ शब्‍द हो रहा था। वे परस्‍पर इस प्रकार प्रहार कर रहे थे, मानो पत्‍थर टकरा रहे हों। लगभग दो घड़ी तक दोनों उस युद्ध में एक दूसरे को खींचते और ठेलते रहे। तदनन्‍तर कुरुश्रेष्‍ठ भीमसेन ने दोनों हाथों से शल्‍य को ऊपर उठाकर उस युद्ध भूमि में पटक दिया। यह देख ब्राह्मणलोग हंसने लगे। कुरुश्रेष्‍ठ बलवान् भीमसेन ने एक आश्‍चर्य की बात यह की कि महाबली शल्‍य को पृथ्‍वी पर पटककर भी मार नहीं डाला। भीमसेन के द्वारा शल्‍य को पछाड़ दिये जाने और अर्जुन से कर्ण के डर जाने पर सभी राजा (युद्ध का विचार छोड़) शंकित हो भीमसेन को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। और एक साथ ही बोल उठे- ‘अहो ! ये दोनों श्रेष्‍ठ ब्राह्मण धन्‍य हैं। पता तो लगाओ, इनकी जन्‍मभूमि कहां है तथा ये रहने वाले कहां के हैं ? ‘परशुराम, द्रोण अथवा पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन के सिवा दूसरा ऐसा कौन है, जो युद्ध में राधानन्‍दन कर्ण का सामना कर सके।। ‘(इसी प्रकार) देवकी नन्‍दन श्रीकृष्‍ण अथवा शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य के सिवा दूसरा कौन है, जो समरभूमि में दुर्योधन के साथ लोहा ले सके। ‘बलवानों में श्रेष्‍ठ भद्रराज शल्‍य को भी वीरवर बलदेव, पाण्‍डुनन्‍दन भीमसेन अथवा वीर दुर्योधन को छोड़कर दूसरा कौन रणभूमि में गिरा सकता है। अत: ब्राह्मणों से घिरे हुए इस युद्धक्षेत्र से हम लोगों को हट जाना चाहिये।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।