महाभारत आदि पर्व अध्याय 197 श्लोक 14-18
सप्तनवत्यधिकशतत (197) अध्याय: आदि पर्व (वैवाहिक पर्व)
देवर्षि ने वहां घटित हुई इस अद्रुत, उत्तम एवं अलौकिक घटना का वर्णन किया है कि सुन्दर कटि प्रदेश वाली महानुभावा द्रौपदी प्रतिवार विवाह के दूसरे दिन कन्याभाव को ही प्राप्त हो जाती थी। विवाह-कार्य सम्पन्न हो आने पर द्रुपद ने महारथी पाण्डवों को दहेज में बहुत-सा धन और नाना प्रकार की उत्तम वस्तुएं समर्पित कीं।सुन्दर सुवर्ण की मालाओं और सुवर्ण-जटित जुओं से सुशोभित सौ रथ प्रदान किये, जिनमें चार-चार घोड़े जुते हुए थे। पद्य आदि उत्तम लक्षणों से युक्त सौ हाथी तथा पर्वतों के समान ऊंचे और सुनहरे हौदों से सुशोभित सौ हाथी और (साथ ही) बहुमूल्य श्रृंगार-सामग्री, वस्त्राभुषण एवं हार धारण करनेवाली एक सौ नवयौवना दासियां भेंट की सोमकवंश में उत्पन्न महानुभाव राजा द्रुपद ने इस प्रकार अग्नि को साक्षी मानकर प्रत्येक सुन्दर दृष्टिवाले पाण्डवों के लिये अलग-अलग प्रचुर धन तथा प्रभुत्व-सूचक बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण अर्पित किये। विवाह के पश्चात् इन्द्र के समान महाबली पाण्डव प्रचुर रत्नराशि के साथ लक्ष्मी स्वरुपा द्रौपदी को पाकर पाञ्चालराज द्रुपद के ही नगर में सुखपूर्वक विहार करने लगे। राजन् ! सभी पाण्डव द्रौपदी की सुशीलता, एकाग्रता और सद्व्यवहार से बहुत संतुष्ट थे (और द्रौपदी को भी संतुष्ट रखने का प्रयत्न करते थे)। इसी प्रकार द्रुपद कुमारी कृष्णा भी उस समय अपने उत्तम नियमों द्वारा पाण्डवों का आनन्द बढ़ाती थी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अन्तर्गत वैवाहिक पर्व में द्रौपदीविषयक एक सौ सत्तानेवां अध्याय पूरा हुआ।
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