महाभारत आदि पर्व अध्याय 226 श्लोक 37-52
षडविंशत्यधिकद्विशततम (226) अध्याय: आदि पर्व (खाण्डवदाह पर्व)
रूद्र, वसु, महाबली मरूद्रण, विश्वेदेव तथ अपने तेज से प्रकाशित होने वाले सांध्यगण - ये और दूसरे बहुत से देवता नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र लेकर उन पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण और अर्जुन को मार डालने की इच्छा से उनकी ओर बढे़। उस महासंग्राम में पलयकाल के समान रूप् वाले तथा प्राणियों को मोह में डाल देने वाले अद्भुत अपशकुन दिखायी देने लगे। देवताओं सहित इन्द्र को रोष में भरा देखकर अपनी महिमा से च्युत न होने वाले निर्भय तथा दुर्धर्ष वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन धनुष तानकर युद्ध के लिये खडे़ हो गये। तदनन्तर वे दोनों युद्धकुशल वीर कुपित हो अपने वज्रोपम बाणों द्वारा वहाँ आते हुए देवताओ को घायल करने लगे। बहुत से देवता बार-बार प्रयत्न करने पर भी कभी सफल मनोरथ न हो सके। उनकी आशा टूट गयी और वे भय के मारे युद्ध छोड़कर इन्द्र की ही शरण में चले गये। श्रीकृष्ण और अर्जुन के द्वारा देवताओं की गति कुण्ठित हुई देख आकाश में खडे़ हुए महर्षिगण बडे़ आश्चर्य में पड़ गये। इन्द्र भी उस युद्ध में बार-बार उन दोनों वीरों का पराक्रम देख बडे़ प्रसन्न हुए और पुनः उन दोनों के साथ युद्ध करने लगे। तदनन्तर इन्द्र ने सव्यसाची अर्जुन के पराक्रम की परीक्षा लेने के लिये पुनः उन पर पत्थरों की बड़ी भारी वर्षा प्रारम्भ की। अर्जुन ने अत्यन्त अमर्ष में भरकर अपने बाणों द्वारा वह सारी वर्षा नष्ट कर दी। सौ यज्ञों का अनुष्ठान करने वाले पाकशासन इन्द्र ने उस पत्थरों की वर्षा को विफल हुई देख पुनः पत्थरों की बड़ी भारी वर्षा की। यह देख इन्द्र कुमार अर्जुन ने अपने पिता का हर्ष बढ़ाते हुए महान् वेगशाली बाणों द्वारा पत्थरों की उस वृष्टि को फिर विलिन कर दिया। इसके बाद इन्द्र ने पाण्डुनन्दन अर्जुन को मारने के लिये अपने दोनों हाथों से एक पर्वत का महान् शिखर वृक्षों सहित उखाड़ लिया और उसे उनके ऊपर चलाया। यह देख अर्जुन ने प्रज्वलित नोक वाले वेगवान् एवं सीधे जाने वाले बाणों द्वारा उस पर्वत शिखर को हजारों टुकडे़ करके गिरा दिया। छिन्न-भिन्न होकर गिरता हुआ वह पर्वत शिखर ऐसा जान पड़ता था मानो सूर्य चन्द्रमा आदि ग्रह आकाश से टूटकर गिर रहे हों। वहाँ गिरे हुए उस महान पर्वत शिखर के द्वारा खाण्डववन में निवास करने वाले बहुत से प्राणी मारे गये ।
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