महाभारत आदि पर्व अध्याय 61 श्लोक 19-38
एकषष्टितम (61) अध्याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)
माता सहित पांचो पाण्ड़व एक साथ हस्तिनापुर से प्रस्थित हुए ।उन महात्मा पाण्डवों के प्रस्थान काल में विदुरजी सलाह देने वाले हुए। उन्ही की सलाह एवं सहायता से पाण्डव लोग लाक्षागृह से बचकर आधी रात के समय वन में भाग निकले थे ।। धृतराष्ट्र की आज्ञा से शत्रुओं का दमन करने वाले कुन्तीकुमार महात्मा पाण्डव बारणावत नगर में आकर लाक्षागृह में अपनी माता के साथ रहने लगे । पुरोचन से सुरक्षित हो सदा सजग रहकर उन्होंने एक वर्ष तक वहां निवास किया । फिर विदुर की प्रेरणा से (विदुर के भेजे हुए आदमियों से) पाण्डवों ने एक सुरंग खुदवायी । तत्पश्चात् वे शत्रुसंतापी पाण्डव उस लाक्षागृह में आग लगा पुरोचन को दग्ध करके भय से व्याकुल हो माता सहित सुरंग द्वारा वहां से निकल भागे ।। तत्पश्चात् वन में एक झरने के पास उन्होंने एक भयंकर राक्षस को देखा, जिसका नाम हिडिम्ब था । राक्षसराज हिडिम्ब को मारकर पाण्डव लोग प्रकट होने के भय से रात में ही वहां से दूर निकल गये। उस समय उन्हें धृतराष्ट्र के पुत्रों का भय सता रहा था। हिडिम्ब-वध के पश्चात भीम को हिडिम्बा नाम की राक्षसी पत्नी रुप में प्राप्त हुई, जिसके गर्भ से घटोत्कच का जन्म हुआ ।। तदनन्तर कठोरव्रत का पालन करने वाले पाण्डव एकचक्रा नगरी में जाकर वेदाध्ययन परायण ब्रह्मचारी बन गये ।।२६।। उस एकचक्रा नगरी में नरश्रेष्ठ पाण्डव अपनी माता के साथ एक बा्ह्मण के घर में कुछ काल तक टिके रहे । उस नगर के समीप एक मनुष्य भक्षी राक्षस रहता था, जिसका नाम था बक । एक दिन महाबाहु भीमसेन उस क्षुधातर महाबली राक्षस बक के समीप गये | नरश्रेष्ठ पाण्डुनन्दन वीरवर भीम ने अपने बाहुबल से उस राक्षस को वेग पूर्वक मारकर वहां के नगर वासियों को धीरज बधांया। वहीं सुनने में आया कि पाञ्चालदेश की राजकुमारी कृष्णा का स्वयंवर होने वाला है । यह सुनकर पाण्डव वहां गये और जाकर उन्होंने राजकुमारी को प्राप्त कर लिया । द्रौपदी को प्राप्त करने के बाद पहचान लिये लाने पर भी वे एक वर्ष तक पाञ्चाल देश में ही रहे । फिर वे शत्रुदमन पाण्डव पुन: हस्तिनापुर लौट आये | वहां आने पर राजा धृतराष्ट्र तथा शान्तनु नन्दन भीष्मजी ने उनसे कहा- ‘तात ! तुम्हें अपने भाई कौरवों के साथे लड़ने-झगड़ने का अवसर न प्राप्त सके लिये हमने विचार किया है कि तुम लोग खाण्डवप्रस्थ में रहो । वहां अनेक जनपद उससे जुड़े हुए हैं । वहां सुन्दर विभाग पूर्वक बड़ी- बड़ी सड़कें बनी हुई हैं। अत: तुम लोग ईर्ष्या का त्याग करके खण्डवप्रस्थ में रहने के लिये जाओ।‘ उन दोनों के इस प्रकार आज्ञा देने पर सब पाण्डव अपने समस्त सुहृदों के साथ सब प्रकार के रत्न लेकर खण्डवप्रस्थ को चले गये । वहां वे कुन्ती पुत्र अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रताप से अन्यान्य राजाओं को अपने वश में करते हुए बहुत वर्षों तक निवास करते रहे । इस प्रकार धर्म को प्रधानता देने वाले, सत्यव्रत के पालन में तत्पर, सदा सावधान एवं सजग रहने वाले, क्षमाशील पाण्डव वीर बहुत से शत्रुओं को संतप्त करते हुए वहां निवास करने लगे । महायशस्वी भीमसेन ने पूर्व दिशा पर विजय पायी । वीर अर्जुन ने उत्तर, नकुल ने पश्चिम और शत्रु वीरों का संहार करने वाले सहदेव ने दक्षिण दिशा पर विजय प्राप्त की ।
« पीछे | आगे » |