महाभारत आदि पर्व अध्याय 63 श्लोक 81-92
त्रिषष्टितम (63) अध्याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)
तदनन्तर वरदान पाकर प्रसन्न हुई सत्यवती नारीपन के समागमोचित गुण (सद्य: ॠतुस्नान आदि) से विभूषित हो गयी और उसने अद्भुतकर्मा महर्षि पराशर के साथ समागम किया। उसके शरीर से उत्तम गन्ध फैलने के कारण पृथ्वी पर उसका गन्धवती नाम विख्यात हो गया। इस पृथ्वी परएक योजन दूर के मनुष्य भी उसी दिव्य सुगन्ध का अनुभव करते थे इस कारण उसका दूसरा नाम योजनगन्धा हो गया। इस प्रकार परम उत्तम वर पाकर हर्षोल्लास के भरी हुई सत्यवती ने महर्षि पराशर का संयोग प्राप्त किया और तत्काल ही एक शिशु को जन्म दिया। यमुना के द्वीप में अत्यन्त शक्तिशाली पराशरनन्दन व्यास प्रकट हुए। उन्होंने माता से यह कहा- ‘आवश्यकता पड़ने पर तुम मेरा स्मरण करना। मैं अवश्य दर्शन दूंगा।’ इतना कहकर माता की आज्ञा ले व्यासजी ने तपस्या में ही मन लगाया। इस प्रकार महर्षि पराशर द्वारा सत्यवती के गर्भ से द्वैपायन व्यासजी का जन्म हुआ। वे बाल्यावस्था में ही यमुना के द्वीप में छोड़ दिये गये, इसलिये ‘द्वैपायन’ नाम से प्रसिद्व हुए। तदनन्तर सत्यवती प्रसन्ना पूर्वक अपने घर पर गयी। उस दनि से भूमण्डल के मनुष्य एक योजन दूर से ही उसकी दिव्य गन्ध का अनुभव करने लगे। उसका पिता दाशराज भी उसकी गन्ध सूंघकर बहुत प्रसन्न हुआ ।। दाशराज ने पूछा. बेटी ! तेरे शरीर से मछली की-सी दुर्गन्ध आने के कारण लोग तुझे ‘मत्स्यगन्धा’ कहा करते थे, फिर तुझमें यह सुगन्ध कहां से आ गयी? किसने यह मछली की दुर्गन्ध दूर कर तेरे शरीर को सुगन्ध प्रदान की है?
सत्यवती बोली- पिताजी ! महर्षि शक्ति के पुत्र महाज्ञानी पराशर हैं, (वे यमुनाजी के तट पर आये थे; उस समय) मैं नाव खे रही थी। उन्होंने मेरी दुर्गन्धता की ओर लक्ष्य करके मुझ पर कृपा की और मेरे शरीर से मछली की गन्ध दूर करके ऐसी सुगन्ध दे दी, जो एक योजन दूर तक अपना प्रभाव रखती है। महर्षि का यह कृपा प्रसाद देखकर सब लोक बड़े प्रसन्न हुए। विद्वान द्वैपायनजी ने देखा कि प्रत्येक युग में धर्म का एक-एक पाद लुप्त होता जा रहा हैं। मनुष्यों की आयु और शक्ति क्षीण हो चली है और युग की ऐसी दुरवस्था हो गयी है। यह सब सुनकर उन्होंने वेद और ब्राम्हणों पर अनुग्रह करने की इच्छा से वेदों का व्यास (विस्तार) किया। इसलिये वे व्यास नाम से विख्यात हुए। सर्वश्रेष्ठ वरदयाक भगवान व्यास ने चारों वेदों तथा पांचवे वेद महाभारत का अध्ययन सुमन्तु, जैमिनी, पैल, अपने पुत्र शुकदेव तथा मुझ वैशम्पायन को कराया। फिर उन सबने पृथक-पृथक महाभारत की संहिताऐं प्रकाशित की। अमित तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म आठवें वसु के अंश से गंगाजी के गर्भ से उत्पन्न हुए। वे महान पराक्रमी और यशस्वी थे ।।९१।। पूर्व काल की बात है वेदार्थों के ज्ञाता, महान यशस्वी, पुरातन मुनि, ब्रह्मर्षि भगवान अणिमाण्डव्य चोर न होते हुए भी चोर के संदेह से शूली पर चढा दिये गये। परलोक में जाने पर उन महा यशस्वी महर्षि ने पहले धर्म को बुलाकर इस प्रकार कहा-।
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