महाभारत आदि पर्व अध्याय 64 श्लोक 38-54

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चतुःषष्टितम (64) अध्‍याय: आदि पर्व (अंशावतर पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: चतुःषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 38-54 का हिन्दी अनुवाद

दानवों ने बलपूर्वक जिस पर अधिकार कर लिया था, पर्वतों और वृक्षों सहित उस पृथ्वी को उस समय कच्छप और दिग्गज आदि की संगठित शक्तियां तथा शेषनाग भी धारण करने में समर्थ न हो सके। महीपाल ! तब असुरों के भार से आतुर तथा भय से पीडि़त हुई पृथ्वी सम्पूर्ण भूतों के पितामह भगवान ब्रह्माजी की शरण में उपस्थित हुई। ब्रह्मलोक में जाकर पृथ्वी ने उन लोक सृष्टा अविनाशी देव भगवान ब्रह्माजी का दर्शन किया, जिन्हें महाभाग देवता, द्विज और महर्षि घेरे हुए थे। देवकर्म में संलग्न रहने वाले अप्सराऐं और गन्धर्व उन्हें प्रसन्नता पूर्वक प्रणाम करते थे। पृथ्वी ने उनके निकट जाकर प्रणाम किया। भारत ! तदनन्तर शरण चाहने वाली भूमि ने समस्त लोक पालों के समीप अपना सारा दुःख ब्रह्माजी से निवेदन किया। राजन् ! स्वयंभू ब्रह्म सबके कारण रूप हैं, अतः पृथ्वी का जो आवश्‍यक कार्य था उन्हें पहले से ही ज्ञात हो गया था। भारत ! भला जो जगत के सृष्टा हैं, वे देवताओं और असुरों सहित समस्त जगत का सम्पूर्ण मनोवत भाव क्यों न समझ लें। महाराज ! जो इस भूमि के पालक और प्रभु हैं, सबकी उत्पत्ति के कारण तथा समस्त प्राणियों के अधीश्‍वर हैं, वे कल्याणमय प्रजापति ब्रह्माजी उस समय भूमि से इस प्रकार बोले। ब्रह्माजी ने कहा- वसुन्धरे ! तुम जिस उद्देश्‍य से मेरे पास आयी हो, उसकी सिद्वि के लिये मैं सम्पूर्ण देवताओं को नियुक्त कर रहा हूं। वैशम्पायनजी कहते है- राजन् ! सम्पूर्ण भूतों की सृष्टि करने वाले भगवान ब्रह्माजी ने ऐसा कहकर उस समय तो पृथ्वी को विदा कर दिया और समस्त देवताओं को यह आदेश दिया- ‘देवताओ ! तुम इस पृथ्वी का भार उतारने के लिये अपने-अपने अंश से पृथ्वी के विभिन्न भागों में पृथक-पृथक जन्म ग्रहण करो। वहां असुरों विरोध करके अभीष्ट उद्देश्‍य की सिद्वि करनी होगी’। इसी प्रकार भगवान ब्रह्मा ने सम्पूर्ण गन्धर्वों और अप्सराओं को भी बुलाकर यह अर्थसाधक बचन कहा। ब्रह्माजी बोले- तुम सब लोग अपने-अपने अंश से मनुष्यों में इच्छानुसार जन्म ग्रहण करो। तदनन्तर इन्द्र आदि सब देवताओं ने देवगुरू ब्रह्माजी की सत्य, अर्थसाधन और हितकर बात सुनकर उस समय उसे शिरोधार्य कर लिया। अब वे अपने-अपने अंशों से भूलोक में सब ओर जाने का निश्‍चय करके शत्रुओं का नाश करने वाले भगवान नारायण के समीप बैकुण्ठ धाम में जाने जाने उद्यत हुए। जो अपने हाथों में चक्र और गदा धारण करते हैं, पीताम्बर पहनते है, जिनके अंगों की कान्ति श्याम रंग की है, जिनकी नाभि से कमल का प्रादुर्भाव हुआ है, जो देव शत्रुओं के नाशक तथ विशाल और मनोहर नेत्रों से युक्त हैं। जो प्रजापतियों के भी पति, दिव्य स्वरूप, देवताओं के रक्षक, महाबली, श्रीवत्स चिन्ह से सुशोभित, इन्द्रियों के अधिष्ठाता तथा सम्पूर्ण देवताओं द्वारा पूजित हैं। उन भगवान पुरूषोत्तम के पास जाकर इन्द्र ने उनसे कहा- प्रभु ! आप पृथ्वी का सोधन (भार-हरण) करने के लिये अपने अंश से अवतार ग्रहण करें। तब श्री हरि ने ‘तथास्तु’ कहकर उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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