महाभारत आदि पर्व अध्याय 66 श्लोक 43-63

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षट्षष्टितम (66) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षट्षष्टितम अध्‍याय: श्लोक 43-63 का हिन्दी अनुवाद

महाबुद्विमान शुक्र ही आचार्य और दैत्यों के गुरू हुए। वे ही योगवल से मेघावी, ब्रह्मचारी एवं व्रतपरायण बृहस्पति के रूप में प्रकट हो देवताओं के भी गुरू होते हैं। ब्रह्माजी ने जब भृगुपुत्र श्रुक को जगत् के योगक्षेम के कार्य में नियुक्त कर दिया, तब महर्षि भृगु ने एक दूसरे निर्दोष पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम था च्यवन। महर्षि च्यवन की तपस्या सदा उद्दीप्त रहती है। वे धर्मात्मा और यशस्वी हैं। भारत ! वे अपनी माता को संकट से बचाने के लिये रोषपूर्वक गर्भ से च्युत हो गये थे (इसलिये च्यवन कहलाये)। मनु की पुत्री आरूशि महर्षि च्यवन मुनि की पत्नी थी। उससे महायशस्वी और्व मुनि का जन्म हुआ। वे अपनी माता की उरू (जांघ) फाड़कर प्रकट हुए थे; इसलिये और्व कहलाये। वे महान् तेजस्वी और अत्यन्त शक्तिशाली थे। बचवन में ही अनेक सद्गुण उनकी शोभा बढाने लगे। और्व के पुत्र ऋचीक तथा ऋचीक के पुत्र जगदग्नि हुए। महात्मा जमदग्नि के चार पुत्र थे, जिनमें परशुरामजी सबसे छोटे थे; किन्तु उनके गुण छोटे नहीं थे; वे श्रेष्ठ सद्गुणों से विभूषित थे। सम्पूर्ण शस्त्र विद्या में कुशल, क्षत्रीय कुल का संहार करने वाले तथा जितेन्द्रिय थे। और्व मुनि के जमदग्नि आदि सौ पुत्र थे। फिर उनके भी सहस्त्रों पुत्र हुए। इस प्रकार इस पृथ्वी पर भृगु वंश का विस्तार हुआ। ब्रह्माजी के दो और पुत्र थे जिनका धारण-पोषण और सृष्टि रूप लक्षण लोक में सदा ही उपलब्ध होता है। उनके नाम हैं धाता और विधाता। ये मनु के साथ रहते हैं। कमलों में निवास करने वाली शुभस्वरूप लक्ष्मीदेवी उन दोनों की बहिन है। आकाश में विचरने वाले अश्‍व लक्ष्मीदेवी मानस पुत्र हैं। राजन् ! वरूण के वीज से उनकी ज्येष्ठ पत्नी देवी ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। उसके पुत्र को तो बल और देवनन्दिनी पुत्री को सुरा समझो। तदनन्तर एक समय ऐसा आया जब प्रजा भूख से पीडि़त हो भोजन की इच्छा से एक-दूसरे को मारकर खाने लगी, उस समय वहां अधर्म प्रकट हुआ, जो समस्त प्राणियों का नाश करने वाला है। अधर्म की स्त्री निर्ऋृति हुई, जिसने नैर्ऋृत नाम वाले तीन भयंकर राक्षस पुत्र उत्पन्न हुए जो सदा पापकर्म में ही लगे रहने वाले हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- भय, महाभय और मृत्यु। उनमें मृत्यु समस्त प्राणियों का अन्त करने वाला है। उसके पत्नी या पुत्र कोई नहीं है; क्योंकि वह सबका अन्त करने वाला है। देवी ताम्रा ने काकी, श्येनी, भाषी, धृतराष्ट्री तथा शुकी इन पांच लोक विख्यात कन्याओं को उत्पन्न किया। जनेश्‍वर ! काकी ने उल्लुओं और श्येनी बाजों को जन्म दिया; भाषी को मुर्गों तथा गीधों का उत्पन्न किया। कल्याणमयी धृतराष्ट्री ने सब प्रकार के हंसों, कलहंसो तथा चक्रवाकों को जन्म दिया। कल्याणमय गुणों से सम्पन्न तथा समस्त शुभलक्षणों से युक्त यशस्विनी शुकी ने शकों (तोतों) को ही उत्पन्न किया। क्रोधवशा ने नौ प्रकार के क्रोधजनित कन्याओं को जन्म दिया। उनके नाम ये है- मृगी, मृगमन्दा, हरि, भद्रमना, मातंगी, सार्दुली, स्वेता, सुरभि तथा सम्पूर्ण लक्षणों से सम्पन्न सुन्दरी सुरसा। नरश्रेष्ठ ! समस्त मृग मृगी की संताने हैं। परमतप ! मृगमन्दा से रीछ तथा सृमर (छोटी जाति के मृग) उत्पन्न हुए। भद्रमना ने एरावत हाथी को अपने पुत्र रूप में उत्पन्न किया। देवताओं का हाथी महान् गजराज ऐरावत भद्रमना का ही पुत्र है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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