महाभारत आदि पर्व अध्याय 67 श्लोक 41-68

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सप्तषष्टितम (67) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: सप्तषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 41-68 का हिन्दी अनुवाद

दनायु के चार पुत्रों में जो सबसे बड़ा है, वह विक्षर नामक तेजस्वी असुर यहां राजा वसुमित्र बताया गया है। नराधिप ! बिक्षर से छोटा उसका दूसरा भाई बल, जो असुरों का राजा था, पाण्डय देश का सुविख्यात राजा हुआ। महाबली बीरनाम से विख्यात जो श्रेष्ठ असुर (विक्षर का तीसरा भाई) था, पौण्ड्रमात्स्यक नाम से प्रसिद्व राजा हुआ। राजन् ! जो वृत्र नाम से विख्यात (और विक्षर का चौथा भाई) महान् असुर था, वही पृथ्वी पर राजर्षि मनिमान के नाम से प्रसिद्व हुआ। क्रोधहन्ता नामक असुर जो उसका छोटा भाई (काला के पुत्रों में तीसरा) था, वह इस पृथ्वी पर दण्ड नाम से विख्यात नरेश हुआ। क्रोधवर्धन नामक जो दूसरा दैत्य कहा गया है, वह मनुष्यों में श्रेष्ठ दण्डधार नाम से विख्यात हुआ। नरश्रेष्ठ ! कालेय नामक दैत्यों के जो पुत्र थे उनमें से आठ इस पृथ्वी पर सिंह के समान पराक्रमी राजा हुऐ। उन आठों कालेयों में श्रेष्ठ जो महान असुर था, वही मगध देश में जयत्सेन नामक राजा हुआ। उन कालेयों में से जो दूसरा इन्द्र के समान श्रीसम्पन्न था, वही अपराजित नामक राजा हुआ। तीसरा जो महान तेजस्वी और महामायावी महादैत्य था, वह इस पृथ्वी पर भयंकर पराक्रमी निषाद नरेश के रूप में उत्पन्न हुआ। कालेयों में से ही एक जो चौथा बताया गया है, वह इस भूमण्डल में राजिर्षि प्रवर श्रेणिमान् से विख्यात हुआ। कालेयों में पांचवा श्रेष्ठ महादैत्य था, वही इस लोक में शत्रुतापन महौजा के नाम से विख्यात हुआ। उन कालेयों में जो छठा असुर था वह भूमण्डल में राजर्षि शिरोमणि अभीरू के नाम से प्रसिद्व हुआ। उन्हीं में से सातवां असुर राजा समुद्रसेन हुआ जो समुद्र पर्यन्त पृथ्वी पर सब ओर विख्यात और धर्म एवं अर्थ तत्व का ज्ञाता था। राजन् ! कालेयों में जो आठवां था, वह वृहत् नाम से प्रसिद्व सर्वभूतहितकारी धर्मात्मा राजा हुआ। महराज ! दानवों में कुक्षिनाम से प्रसिद्व जो महाबली राजा था, वह पार्वतीय नामक राजा हुआ; जो मेरूगिरी के समान तेजस्वी एवं विशाल था। महापराक्रमी क्रथन नामक जो श्रीसम्पन्न महान असुर था, वह भूमण्डल में पृथ्वीपति राजा सूर्याक्ष नाम से उत्पन्न हुआ। असुरों में जो सूर्य नामक श्रीसम्पन्न महान असुर था, वह पृथ्वी पर सब राजाओं में श्रेष्ठ दरद नामक बान्हीक राजा हुआ। राजन् ! क्रोधवश नामक जिन असुरगणों का तुम्हें परिचय दिया है, उन्हीं में से कुछ लोग इस पृथ्वी पर निम्नांकित वीर राजाओं के रूप में उत्पन्न हुए। मद्रक, कर्णवेष्ट, सिद्वार्थ, कीटक, सुवीर, सुबाहु, महाबीर, बाहिृक, क्रथ, विचित्र, सुरथ, श्रीमान् नील नेरश, चैरवासा, भूमिपाल, दन्तवक्त्र, दानव दुर्जय, नृपश्रेष्ठ रूक्मी, राजा जनमेजय, आषाढ, वायुवेग, भूरितेजा, एकलव्य, सुमित्र, बाटधान, गोमुख, करूषदेश के अनेक राजा, क्षेमधूर्ति, श्रुतायु, उदूह, बृहत्सेन, क्षेम, उग्रतीर्थ, कलिंग नरेश कुहर तथा परम बुद्विमान् मनुष्यों का राजा ईश्‍वर। इतने राजाओं का समुदाय पहले इस पृथ्वी पर क्रोधवश नामक दैत्यगण से उत्पन्न हुआ था। ये सब राजा परम सौभाग्यशाली, महान् यशस्वी और अत्यन्त बलशाली थे। दानवों में जो महाबली कालनेमि था, वही राजा उग्रसेन के पुत्र बलवान् कंस के नाम से विख्यात हुआ। इन्द्र के समान कान्तिमान् राजा देव के रूप में इस पृथ्वी पर श्रेष्ठ गन्धर्वराज ही उत्पन्न हुआ था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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