महाभारत आदि पर्व अध्याय 71 श्लोक 37-42
एकसप्ततितम (71) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी, तपस्वी और जितेन्द्रिय महात्मा का मुझ जैसी नारी कैसे स्पर्श कर सकती है? सुरश्रेष्ठ ! अग्नि जिनका मुख है, सूर्य और चन्द्रमा जिनकी आंखों के तारे हैं और काल जिनकी जिव्हा है, उन तेजस्वी महर्षि को मेरी जैसी स्त्री कैसे छू सकती है? यमराज, चन्द्रमा, महर्षिगण, साध्यगण, विश्वेदेव और सम्पूर्ण बालखिल्य ऋषि - ये भी जिनके प्रभाव से उदिग्न रहते हैं, उन विश्वामित्र मुनि से मेरी जैसी स्त्री कैसे नहीं डरेगी? सुरेन्द्र ! आपके इस प्रकार वहां जाने का आदेश देने पर मैं उन महर्षि के समीप कैसे नहीं जाऊंगी? किंतु देवराज ! पहले मेरी रक्षा का कोई उपाय सोचिये; जिससे सुरक्षित रहकर मैं आपके कार्य की सिद्वि के लिये चेष्टा कर सकूं। देव ! मैं वहां जाकर जब क्रीड़ा में निमग्न हो जाऊं उस समय वायुदेव आवश्यकता समझ कर मेरा वस्त्र उड़ा दें और इस कार्य में आपके प्रसाद से कामदेव भी मेरे सहायक हों। जब मैं ऋषि को लुभाने लगूं, उस समय वन से सुगन्ध भरी वायु चलनी चाहिये। ‘तथास्तु’ कहकर इन्द्र ने जब इस प्रकार की व्यवस्था कर दी तब मेनका विश्वामित्र मुनि के आश्रम पर गयी।
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