महाभारत आदि पर्व अध्याय 72 श्लोक 14-19
द्विसप्ततितम (72) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
कण्व मुनि कहते हैं- ब्रह्मन् ! मैं समस्त प्राणियों की बोली समझता हूं और सब जीवों के प्रति दयाभाव रखता हूं। अतः उस निर्जन महावन में पक्षियों से घिरी हुई इस कन्या को वहां से लाकर मैंने इसे अपनी पुत्री के पद पर प्रतिष्ठित किया। जो गर्भाधान के द्वारा शरीर का निर्माण करता है, जो अभयदान देकर प्राणों की रक्षा करता है और जिसका अन्न भोजन किया जाता है, धर्मशास्त्र में क्रमश: ये तीनों पुरूष पिता कहे गये हैं। निर्जन वन में इसे शकुन्तों ने घेर रक्खा था, इसलिये ‘शकुन्तान् लाति रक्षकत्वेन गृहान्ति’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार इस कन्या का नाम मैंने ‘शकुन्तला’ रख दिया। ब्रह्मन् ! इस प्रकार शकुन्तला मेरी बेटी हुई, आप यह जान लें। प्रशंसनीय शील-स्वभाव वाली शकुन्तला भी मुझे अपना पिता मानती है। शकुन्तला कहती है- राजन् ! उन महर्षि के पूछने पर पिता कण्व ने मेरे जन्म का यह वृत्तान्त उन्हें बताया था। इस तरह आप मुझे कण्व की ही पुत्री समझिये। मैं अपने जन्मदाता पिता को तो जानती नहीं, कण्व को ही पिता मानती हूं। महाराज ! इस प्रकार जो वृत्तान्त मैंने सुन रक्खा था, वह सब आपको बता दिया।
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