महाभारत आदि पर्व अध्याय 74 श्लोक 8-11
चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
‘यह सब जीवों का दमन करता है, इसलिये ‘सर्वदमन’ नाम से प्रसिद्ध हो।‘ तब से उस कुमार का नाम सर्वदमन हो गया। वह पराक्रम, तेज और बल से सम्पन्न था। राजा दुष्यन्त ने अपनी रानी और पुत्र को बुलाने के लिये जब किसी भी मनुष्य को नहीं भेजा, तब शकुन्तला चिन्तामग्न हो गयी। उसके सारे अंग सफेद पड़ने लगे। उसके खुले हुए लंबे केश लटक रहे थे, वस्त्र मैले हो गये थे, वह अत्यन्त दुर्बल और दीन दिखायी देती थी। शकुन्तला को इस दयनीय दशा में देखकर कण्व मुनि ने कुमार सर्वदमन के लिये विद्या का चिन्तन किया। इससे उस बारह वर्ष के ही बालक के हृदय में समस्त शास्त्रों और सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान प्रकाशित हो गया। महर्षि कण्व ने उस कुमार और उसके लोकोत्तर कर्म को देखकर शकुन्तला से कहा- ‘अब इसके युवराज-पद पर अभिषिक्त होने का समय आया है। ‘मेरी कल्याणमयी पुत्री! मेरा यह वचन सुनो। पवित्र मुसकान वाली शकुन्तले! पतिव्रता स्त्रियों के लिये यह विशेष ध्यान देने योग्य बात है; इसलिये बता रहा हूं। ‘सती स्त्रियों के लिये सर्वप्रथम कर्तव्य यह है कि वे मन, वाणी, शरीर और चेष्टाओं द्वारा निरन्तर पति की सेवा करती रहें। मैंने पहले भी तुम्हें इसके लिये आदेश दिया है। तुम अपने इस व्रत का पालन करो। इस पतिव्रतोचित आचार-व्यवहार से ही विशिष्ट शोभा प्राप्त कर सकोगी। ‘भद्रे! तुम्हें पुरुनन्दन दुष्यन्त के पास जाना चाहिये। वे स्वयं नहीं आ रहे हैं, ऐसा सोचकर तुमने बहुत-सा समय उनकी सेवा से दूर रहकर बिता दिया। शुचिस्मिते ! अब तुम अपने हित की इच्छा से स्वयं जाकर राजा दुष्यन्तकी आराधना करो। ‘वहां दुष्यन्तकुमार सर्वदमन को युवाराज पद पर प्रतिष्ठित देख तुम्हें बड़ी प्रसन्नता होगी। देवता, गुरु, क्षेत्रिय, स्वामी तथा साधु पुरुष- इनका संग विशेष हितकर है। अत: बेटी ! तुम्हें मेरा प्रिय करने की इच्छा से कुमार के साथ अवश्य अपने पति के यहां जाना चाहिये। मैं अपने चरणों की शपथ दिलाकर कहता हूं कि तुम मेरी इस आज्ञा के बिपरीत कोई उत्तर न देना’। वैशम्पायनजी कहते हैं-पुत्री से ऐसा कहकर महर्षि कण्व ने उसके पुत्र भरत को दोनों बांहों में पकड़कर अंग में भर लिया और उसका मस्तक सूंघकर कहा। कण्व बोले- वत्स ! चन्द्रवंश में दुष्यन्त नाम से प्रसिद्व एक राजा हैं। पवित्र व्रत का पालन करने वाली यह तुम्हारी माता उन्हीं की महारानी है। यह सुन्दरी तुम्हेंसाथ लेकर अब पति की सेवा में जाना चाहती है। तुम वहां जाकर राजा को प्रणाम करके युवाराज-पद प्राप्त करोगे। वे महाराज दुष्यन्त ही तुम्हारे पिता हैं। तुम सदा उनकी आज्ञा के अधीन रहना और बाप-दादे के राज्य का प्रेमपूर्वक पालन करना। (फिर कण्व शकुन्तला से बोले-) ‘भामिनी ! शकुतले ! यह मेरी हितकर एवं लाभप्रद बात सुनो। पतिव्रता भाव सम्बन्धी गुणों को छोड़कर तुम्हारे लिये और कोई वस्तु साध्य नहीं है। पतव्रताओं पर सम्पूर्ण वरों को देने वाले देवता लोग भी संतुष्ट रहते हैं। भामिने ! वे आपत्ति के निवारण के लिये अपने कृपा-प्रसाद का भी परिचय देंगे। शुचिस्मिते ! पतिव्रता देवियां पति के प्रसाद से पुण्यगति को ही प्राप्त होती हैं; अशुभ गति को नहीं। अत: तुम जाकर राजा की आराधना करो’। फिर उस बालक के बल को समझकर कण्व ने अपने शिष्यों से कहा- ‘तुम लोग समस्त शुभ लक्षणों से सम्मानित मेरी पुत्री शकुन्तलाऔर इसके पुत्र को शीघ्र ही इस घर से ले जाकर पति के घर में पहुंचा दो।
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