महाभारत आदि पर्व अध्याय 8 श्लोक 20-27

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अष्टम (8) अध्‍याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 20-27 का हिन्दी अनुवाद

उस सर्प के डँस लेने पर वह सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ी। उसके शरीर का रंग उड़ गया, शोभा नष्ट हो गयी, आभूषण इधर-उधर बिखर गये और चेतना लुप्त हो गयी। उसके बाल खुले हुए थे। अब वह अपने उन बन्धुजनों के हृदय में विषाद उत्पन्न कर रही थी, जो कुछ ही क्षण पहले अत्यन्त सुन्दरी एंव दर्शनीय थी, वही प्राण शून्य होने के कारण अब देखने योग्य नहीं रह गयी। वह सर्प के विष से पीडि़त होकर गाढ़ निद्रा में सोयी हुई की भाँति भूमि पर पड़ी थी। उसके शरीर का मध्यभाग अत्यन्त कृश था। वह उस अचेतनावस्था में भी अत्यन्त मनोहारिणी जान पड़ती थी। उसके पिता स्थूलकेश ने तथा अन्य तपस्वी महात्माओं ने भी आकर उसे देखा। वह कमल की सी कान्ति वाली किशोरी धरती पर चेष्टा रहित पड़ी थी। तदनन्तर स्वस्त्यात्रेय, महाजानु, कुशिक, शंखमेखल, उद्दालक, कठ, महायशस्वी, श्वेत, भरद्वाज, कौणकुत्स्य, अर्ष्टिषेण, गौतम, अपने पुत्र रूरू सहित प्रमति तथा अन्य सभी वनवासी श्रेष्ठ द्विज दया से द्रवित होकर वहाँ आये। वे सब लोग उस कन्या को सर्प के विष से पीडि़त हो प्राण शून्य हुई देख करूणा वश रोने लगे। रूरू तो अत्यन्त आर्त होकर वहाँ से बाहर चला गया और शेष सभी द्विज उस समय वहीं बैठे रहे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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