महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 54 श्लोक 19-23
चतुष्पञ्चाशत्तम (54) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
जब मैं नागयोनि में जन्म ग्रहण करता हूँ, तब नागों की तरह बर्ताव करता हूँ। यक्षों और राक्षसों की योनियों में प्रकट होने पर उन्हीं के आचार-विचार का यथावत् रूप से पालन करता हूँ। इस समय मैं मनुष्ययोनि में अवतीर्ण हुआ हूँ, इसलिये कौरवों पर अपनी ईश्वरीय शक्ति का प्रयोग न करके पहले मैंने दीनतापूर्वक ही संधि के लिये प्रार्थना की थी, परंतु उन्होंने मोहग्रस्त होने के कारण मेरी हितकर बात नहीं मानी। इसके बाद क्रोध में भरक मैंने कौरवों को बड़े-बड़े भय दिखाये और उन्हें बहुत डराया-धमकाया तथा यथार्थ रूप से युद्ध का भावी परिणाम भी उन्हें दिखाया, परंतु वे तो अधर्म से युक्त एवं काल से ग्रस्त थे। अत: मेरी बात मानने को राजी न हुए। फिर क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध में मारे गये। इसमें संदेह नहीं कि वे सब के सब स्वर्ग लोक में गये हैं। द्विजश्रेष्ठ! पाण्डव अपने धर्मा चरण के कारण समस्त लोकों में विख्यात हुए हैं। आपने जो कुछ पूछा था, उसके अनुसार मैंने यह सारा प्रसंग कह सुनाया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में उत्तंक के पाख्यान में श्रीकृष्ण का वचन विषयक चौवनावाँ अध्याय पूरा हुआ।
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