महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 63 श्लोक 1-14

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त्रिषष्टितम (63) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

युधिष्ठर का अपने भाइयों के साथ परामर्श करके सबको साथ ले धन ले आने के लिये प्रस्थान करना

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन्! महात्मा व्यास का कहा हुआ यह वचन सुनकर राजा युधिष्ठर ने अश्वमेध यज्ञ के संबंध में फिर क्या किया? राजा मरुत्त ने जो रत्न पृथ्वी तल पर रख छोड़ा था, उसे उन्होंने किस प्रकार प्राप्त किया? द्विजश्रेष्ठ! यह सब मुझे बताइये। वैशम्पायनजी ने कहा- राजन्! व्यासजी की बात सुनकर धर्मराज युधिष्ठर ने भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव- इन सब भाइयों को बुलवाकर यह समाचोचित वचन कहा- ‘वीर बन्धुओं! कौरवों के हित की कामना रखने वाले बुद्धिमान महात्मा श्रीकृष्ण ने सौहार्दवश जो बात कही थी, वह सब तुमने सुनी ही थी। ‘सुहृदों की भलाई चाहने वाले महान् तपोवृद्ध महात्मा धर्मशील गुरु व्यास ने अद्भुत पराक्रमी भीष्म ने तथा बुद्धिमान गोविन्द ने समय-समय पर जो सलाह दी है, उसे याद करके मैं उनके आदेश का भली-भाँति पालन करना चाहता हूँ। महाप्राज्ञ पाण्डवों! उन महात्माओं का यह वचन भविष्य और वर्तमान में भी हम सबके लिये हितकारक है। ‘ब्रह्मवादी महात्मा व्यासजी का वचन परिणाम में हमारा कल्याण करने वाला है। कौरवों! इस समय इस सारी पृथ्वी पर रत्न एवं धन का नाश हो गया है; अत: हमारी आर्थिक कठिनाई दूर करने के लिए व्यासजी ने उस दिन हमें मरुत्त के धन का पता बताया था। ‘यदि तुम लोग उस धन को पर्याप्त समझो और उसे ले आने की अपने में सामर्थ्य देखो तो व्यासजी ने जैसा कहा है, उसी के अनुसार धर्मत: उसे प्राप्त करने का यत्न करो। अथवा भीमसेन! तुम बोलो, तुम्हारा इस संबंध में क्या विचार है? कुरुकुलशिरोमीणे! राजा युधिष्ठर के ऐसा कहने पर भीमसेन ने हाथ जोड़कर उन नृपश्रेष्ठ से इस प्रकार कहा- ‘महाबाहो! आपने जो कुछ कहा है, व्यासजी के बताये हुए धन को लाने के विषय में जो विचार व्यक्त किया है, वह मुझे बहुत पसंद है। ‘प्रभो! महाराज! यदि हमें मरुत्त का धन प्राप्त हो जाय तब तो हमारा सारा काम बन ही जाय। यहीं मेरा मत है। ‘आपका कल्याण हो! हम महात्मा गिरीश के चरणों में प्रणाम करके उन जटाजूटधारी महेश्वर की सम्यक् आराधना करके उस धन को ले आवें। ‘हम बुद्धि, वाणी और क्रिया द्वारा आराधनापूर्वक देवाधिदेव महादेव तथा उनके अनुचरों को प्रसन्न करके निश्चय ही उस धन को प्राप्त कर लेंगे।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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