महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 82 श्लोक 17-30
द्वयशीतितम (82) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
अब सव्यवाची अर्जुन का क्रोध बढ़ गया । उन्होंने अपने धनुष को जोर से खींचा और मेघ सन्धि के घोड़ों को प्राणहीन करकेउसके सारथि का भी सिर उड़ा दिया। फिर उसके विशाल एवं विचित्र धनुष को क्षुर से काट डाला और उसके दस्ताने, पताका और ध्वजा को भी धरती पर काट गिराया। घोड़े, धनुष और सारथि के नष्ट हो जाने पर मेघ सन्धि को बड़ा दु:ख हुआ । वह गदा हाथ में लेकर कुन्तीनन्दन अर्जुन की ओर बडे वेग से दौडा । उसके आते ही अर्जुन ने गृध्र पंखयुक्त बहुसंख्यक बाणों द्वारा उसकी सुवर्ण भूषित गदा के शीघ्र ही अनेक टुकड़े कर डाले । उस गदा की मूंठ टूट गयी और उसके टुकडे – टुकड़े हो गये । उस दशा में वह हाथ से छूटी हुई सर्पिणी के समान पृथ्वी पर गिर पडी । जब मेघ सन्धि रथ, धनुष और गदा से भी वंचित हो गया, तब कपिध्वज अर्जुन ने उसे साप्त्वना देते हुए इस प्रकार कहा - 'बेटा ! तुमने क्षत्रिय धर्म का पूरा – पूरा प्रदर्शन कर लिया । अब अपने घर जाओ । भूपाल ! तुम अभी बालक हो । इस समरांगण तुमने जो पराक्रम किया है, यही तुम्हारे लिये बहुत है । 'राजन ! महाराज युधिष्ठिर का यह आदेश है कि 'तुम युद्ध में राजाओं का वध मत न करना ।' इसीलिये तुम मेरा अपराध करने पर भी अब तक जीवित हो' । अर्जुन की यह बात सुनकर मेघ सन्धि को यह विश्वास हो गया कि अब इन्होंने मेरी जान छोड़ दी है । तब वह अर्जुन के पास गया और हाथ जोडकर उनका समादर करते हुए कहने लगा - 'वीरवर ! आपका कल्याण हो । मैं आपसे परास्त हो गया । अब मैं युद्ध करने का उत्साह नहीं रखता । अब आपको मुझसे जो – जो सेवा लेनी हो, वह बताइये और उसे पूर्ण की हुई ही समझिये' । तब अर्जुन ने उसे धैर्य देते हुए पुन: इस प्रकार कहा – राजन ! तुम आगामी चैत्रमास की पूर्णिमा को हमारे महाराज के अश्वमेध यज्ञ में अवश्य आना' । उनसे ऐसा कहने परे सहदेव पुत्र ने 'बहुत अच्छा कहकर उनकी आाज्ञा शिरोधार्य की और उस घोड़े तथा युद्ध स्थल के श्रेष्ठ वीर अर्जुन विधि पूर्वक पूजन किया । तदनन्तर वह घो़ड़ा पुन: अपनी इच्छा के अनुसार आगे चला । वह समुद्र के किनारे – किनारे होता हुआ वंग, पुण्ड्र और कौसल आदि देशों में गया । राजन ! उन देशों में अर्जुन केवल गाण्डीव धनुष की सहायता से म्लेच्छा की अनेक सेनाओं को परास्त किया ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में मगधराज की पराजय विषयक बयासीवां अध्याय पूरा हुआ ।
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