महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 72 श्लोक 19-26
द्विसप्ततितम (72) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
‘प्रजानाथ ! कुन्तीकुमार भीमसेन भी अत्यन्त तेजस्वी और अमित पराक्रमी हैं । नकुल में भी वे ही गुण हैं । ये दोनों ही राज्य की रक्षा करने में पूर्ण समर्थ हैं ( अत: वे ही राज्य के कार्य देखें )। ‘कुरुनन्दन ! महायशस्वी बुद्धिमान सहदेव कुटुम्ब पालन सम्बन्धी समस्त कार्यों की देखभाल करेंगे’। व्यासजी के इस प्रकार बतलाने पर कुरुकुलतिलक युधिष्ठिर ने सारा कार्य उसी प्रकार यथोचित रीति से सम्पन्न किया और अर्जुन को बुलाकर घोड़े की रक्षा के लिये इस प्रकार आदेश दिया। युधिष्ठिर बोले– वीर अर्जुन ! यहां आओ, तुम इस घोड़े की रक्षा करो ; क्योंकि तुम्हीं इसकी रक्षा करने के योग्य हो । दूसरा कोई मनुष्य इसके योग्य नहीं है। महाबाहो ! निष्पाप अर्जुन ! अश्व की रक्षा के समय जो राजा तुम्हारे सामने आवें, उनके साथ भरसक युद्ध न करनापड़े, ऐसी चेष्टा तुम्हें करनी चाहिये। महाबाहो ! मेरे इस यज्ञ का समाचार तुम्हें समस्त राजाओं को बताना चाहिये और उनसे यह कहना चाहिये कि आप लोग यथासमय यज्ञ में पधारें। वैशम्पायनजी कहते हैं– राजन् ! अपने भाई सव्यसाची अर्जुन से ऐसा कहकर धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर ने भीमसेन और नकुल को नगर की रक्षा का भार सौंप दिया। फिर महाराज धृतराष्ट्र की सम्मति लेकर युधिष्ठिर ने योद्धाओं स्वामी सहदेव को कुटुम्बपालन सम्बन्धी कार्य में नियुक्त कर दिया।
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