महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 80 श्लोक 55-61

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अशीतितम (80) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 55-61 का हिन्दी अनुवाद

मेघ के समान गम्‍भीर ध्‍वनि करने वाली देव – दुन्‍दुभियां बिना बजाये ही बज उठीं और आकाश में साधुवाद की महान ध्‍वनि गूंजने लगी। महाबाहु अर्जुन भली भांति स्‍वस्‍थ होकर उठे और बभ्रुवाहन को ह्दय से लगाकर उसका मस्‍तक सूंघने लगे। उससे थोड़ी ही दूर पर बभ्रुवाहन की शोकाकुल माता चित्रांगदा उलूपी के साथ खड़ी थी । अर्जुन ने जब उसे देखा, तब बभ्रुवाहन से पूछा-शत्रुओं का संहार करने वाले वीर पुत्र ! यह सारा समरांगण शोक, विस्‍मय और हर्ष से युक्‍त क्‍यों दिखायी देता है ? यदि जानते हो तो मुझे बताओ। तुम्‍हारी माता किसलिये रणभूमि में आयी है ?तथा इस नागराज कन्‍या उलूपी का आगमन भी यहां किसलिये हुआ है ? मैं तो इतना ही जानता हूं कि तुमने मेरे कहने से यह युद्ध किया है ; परन्‍तु यहां स्‍त्रियों के आने क्‍या कारण है ? यह मैं जानना चाहता हूं। पिता के इस प्रकार पूछने पर विद्वान् मणिपुर नरेश ने पिता केचरणों में सिर रखकर उन्‍हें प्रसन्‍न किया और कहा – पिताजी ! यह वृतान्‍त आप माता उलूपी से पूछिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्‍वमेधिक पर्व के अन्‍तर्गत अनुगीता पर्व में अश्‍वानुसरण प्रसंग में अर्जुन का पुनर्जीवन विषयक अस्‍सीवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।