महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 87 श्लोक 1-16

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्‍ताशीतितम (87) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: सप्‍ताशीतितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन के विषय में श्रीकृष्‍ण और युधिष्‍ठिर की बातचीत, अर्जुन का हस्‍तिनापुर में जाना तथा उलूपी और चित्रांगदा के साथ बभ्रुवाहन का आगमन

युधिष्‍ठिर बोले– प्रभो ! श्रीकृष्‍ण ! मैंने यह प्रिय संदेश सुना, जिसे आप ही कहने या सुनाने के योग्‍य हैं । आपका यह अमृतरस से परिपूर्ण पवित्र वचन मेरे मन को आनन्‍द मग्‍न किये देता है। हषीकेश ! मेरे सुनने में आया है कि भिन्‍न-भिन्‍न देशों में वहां के राजाओं के साथ अर्जुन को कई बार युद्ध करने पड़े हैं। इसका क्‍या कारण है ? बुद्धिमान जनार्दन ! जब मैं एकान्‍त में बैठकर अर्जुन के बारे में विचार करता हूं, तब यह जानकर मेरा मन खिन्‍न हो जाता है कि हम लोगों में वे ही सदा सबसे अधिक दु:ख के भागी रहे हैं । पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन सुख से वंचित क्‍यों रहते हैं ? यह समझ में नहीं आता। श्रीकृष्‍ण ! उनका शरीर तो सभी शुभ लक्षणों से सम्‍पन्‍न है । फिर उसमें अशुभ लक्षण कौन– सा है, जिससे उन्‍हें दु:ख उठाना पड़ता है ? कुन्‍तीनन्‍दन अर्जुन सदा अधिक कष्‍ट भोगते हैं; परंतु उनके अंगों में कहीं कोई निन्‍दनीय दोष नहीं दिखाई देता है । ऐसी दशा में उन्‍हें कष्‍ट भोगने का कारण क्‍या है ? यह मैं सुनना चाहता हूं । आप मुझे विस्‍तार पूर्वक यह बात बतावें। युधिष्‍ठिर के इस प्रकार पूछने पर भोजवंशी क्षत्रियों की वृद्धि करने वाले भगवान हषीकेश विष्‍णु ने बहुत देर तक उत्‍तम रीति से चिन्‍तन करने के बाद राजा युधिष्‍ठिर से यों कहा- ‘नरेश्‍वर ! पुरुषसिंह अर्जुन की पिण्‍डलियां ( फिल्‍लियां ) औसत से कुछ अधिक मोटी हैं । इसकेसिवा और कोई अशुभ लक्षण उनके शरीर में मुझे भी नहीं दिखायी देता है’। ‘उन मोटी फिल्‍लियों के कारण ही पुरुषसिंह अर्जुन को सदा रास्‍ता चलना पड़ता है । और कोई कारण मुझे नहीं दिखायी देता, जिससे उन्‍हें दु:ख झेलना पड़े’। प्रभो ! बुद्धिमान श्रीकृष्‍ण के ऐसा कहने पर पुरुष श्रेष्‍ठ युधिष्‍ठिर ने उन वृष्‍णि सिंह से कहा – ‘भगवन् ! आपका कहना ठीक है’। उस समय द्रुपद कुमारी कृष्‍णा ने भगवान श्रीकृष्‍ण की ओर तिरछी चितवन से ईर्ष्‍या पूर्वक देखा। केशिहन्‍ता श्रीकृष्‍ण ने द्रोपदी के उस प्रेमपूर्ण उपालम्‍भ को सानन्‍द ग्रहण किया ; क्‍योंकि उसकी दृष्‍टिमें सखा अर्जुन के मित्र भगवान हषीकेश साक्षात् अर्जन के ही समान थे। उस समय भीमसेन आदि कौरव और यज्ञ कराने वाले ब्राह्मण लोग अर्जुन के सम्‍बन्‍ध में यह शुभ एवं विचित्र बात सुनकर बहुत प्रसन्‍न हो रहे थे। उन लोगों में अर्जुन के सम्‍बन्‍ध में इस तरह की बातें हो रही थीं कि महात्‍मा अर्जुन का भेजा हुआ दूत वहां आ पहुंचा। वह बुद्धिमान दूत कुरुश्रेष्‍ठ युधिष्‍ठिर के पास जा उन्‍हें नमस्‍कार करके बोला – ‘पुरुषसिंह अर्जुन निकट आ गये हैं। यह शुभ समाचार सुनकर राजा युधिष्‍ठिर की आंखों में आनन्‍द के आंसू छलक आये और यह प्रिय वृत्‍तान्‍त निवेदन करने के कारण उस दूत को पुरस्‍कार रूप में उन्‍होंने बहुत – सा धन दिया। तदनन्‍तर दूसरे दिन कौरव –धुरंधर नरव्‍याघ्र अर्जुन के आते समय नगर में महान् कोलाहल बढ़ गया।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।