महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-27
द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)
जो काठ की खड़ाऊं दान करते हैं, वे काष्ठ निर्मित विमानों पर आरूढ़ होकर श्रेष्ठ देवताओं से सेवित हो धर्मराज के रमणीय नगर में प्रवेश करते हैं। दातौ का दान करने से मनुष्य मधुर भाषी होता है । उसके मुंह से सुगन्ध निकलती रहती है तथा वह लक्ष्मीवान् एवं बुद्धि और सौभाग्य से सम्पन्न होता है। जो मनुष्य अतिथि और कुटुम्बीजनों को भोजन करा लेने के पश्चात् स्वयं भोजन करता है, सदा व्रत का पालन करता है, सत्य बोलता है, क्रोध से दूर रहता है तथा स्नान आदि द्वारा सर्वदा पवित्र रहता है, दिव्य विमान के द्वारा इन्द्रलोक की यात्रा करता है। जो एक वर्ष तक प्रतिदिन एक वक्त भोजन करता है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है, क्रोध को काबू में रखता है तथा सत्य और शौच का पालन करता है, वह दिव्य विमान में बैठकर इन्द्रलोक में पदार्पण करता है। जो एक वर्ष तक चौथे वक्त अर्थात् प्रति दूसरे दिन भोजन करता है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है, और इन्द्रियों को काबू में रखता है, उसके पुण्य का फल सुनो। वह मनुष्य विचित्र पंखवाले मोरों से जुते हुए अद्भुत ध्वज से शोभायमान दिव्य विमान पर आरूढ़ हो महेन्द्रलोक में गमन करता है। राजन् ! जो मनुष्य पवित्र और मेरे परायण होकर मेरे श्रीविग्रह में मन लगाता (मेरा ध्यान करता) है तथा विशेषत: चतुर्दशी के दिन रुद्र अथवा दक्षिणा मूर्ति में चित्त एकाग्र करता है, वह महान् तपस्वी पुरुष सिद्धों, ब्रह्मर्षियों और देवताओं से पूजित होकर गन्धर्वों और भूतों का गान सुनता हुआ मुझ में या शंकर में प्रवेश कर जाता है तथा उसका इस संसार में फिर जन्म नहीं होता – इसमें कोई विचार की बात नहीं है। राजेन्द्र ! जो मनुष्य गौ, स्त्री, गुरु और ब्राह्मण की रक्षा के लिये प्राण दे डालते हैं, वे इन्द्रलोक में जाते हैं। वहां इच्छानुसार विचरने वाले सुवर्ण के बने हुए विमान पर रहकर दिव्य नारियों से सेवित हुए एक मन्वन्तर तक आनन्द का अनुभव करते हैं। देने की प्रतिज्ञा की हुई वस्तु को दान न देने से अथवा दी हुई वस्तु को छीन लेने से जन्म भर का किया हुआ सारा दान – पुण्य नष्ट हो जाता है। अक्षय सुख चाहने वाले मनुष्य को चाहिये कि जो – जो न्याय से उपार्जित किया हुआ अत्यन्त अभीष्ट द्रव्य है, वह – वह गुणवान् ब्राह्मण को दान में दे। युधिष्ठिर ने पूछा – भगवान ! द्विजातियों के द्वारा पंचमहायज्ञों का अनुष्ठान यहां किस प्रकार किया जाता है ? देवेश्वर ! उन यज्ञों के नाम भी पूर्णतया बताने चाहिये। श्रीभगवान ने कहा – युधिष्ठिर ! जिनके अनुष्ठान से गृहस्थ पुरुषों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है, उन पंचमहायज्ञों का वर्णन करता हूं, सुनो। पाण्डुनन्दन ! ऋभुयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ और पितृयज्ञ – ये पंच यज्ञ कहलाते हैं। इनमें ‘ऋभुयज्ञ’ तर्पण को कहते हैं, ‘ब्रह्मयज्ञ’ स्वाध्याय का नाम है, समस्त प्राणियों के लिये अन्न की बलि देना ‘भूतयज्ञ’ है, अतिथियों की पूजा को ‘मनुष्ययज्ञ’ कहते हैं और पितरों के उद्देश्य से जो श्राद्ध आदि कर्म किये जाते हैं, उनकी ‘पितृयज्ञ’ संज्ञा है। हुत, अहुत, प्रहुत, प्राशित और बलिदान – ये पाकयज्ञ कहलाते हैं।
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