महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 104 श्लोक 18-30

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चतुरधिकशततम (104) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-30 का हिन्दी अनुवाद

कणव मुनि कहते हैं – राजन् ! तब मातलि ने आर्यक से कहा- ' मैंने इस विषय में एक विचार किया है । यह तो निश्चय ही है कि मैंने आपके पौत्र को जामाता के पद पर वरण कर लिया । 'अत: यह नागकुमार मेरे और नारदजी के साथ त्रिलोकीनाथ देवराज इन्द्र के पास चलकर उनका दर्शन करें ।'साधुशिरोमणे ! तदनंतर मैं अवशिष्ट कार्य द्वारा इसकी आयु के विषय में जानकारी प्राप्त करूंगा और इस बात की भी चेष्टा करूंगा कि गरुड़ इसे न मार सके । 'नागराज ! आपका कल्याण ही । सुमुख अपने अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मेरे साथ देवराज इन्द्र के पास चले' । तदनंतर उन सभी महातेजस्वी सज्जनों ने सुमुख को साथ लेकर परम कांतिमान देवराज इन्द्र का दर्शन किया, जो स्वर्ग के सिंहासन पर विराजमान थे । दैवयोग से वहाँ चतुर्भुज भगवान विष्णु भी उपस्थित थे । तदनंतर देवर्षि नारद ने मातलि से संबंध रखनेवाला सारा वृतांत कह सुनाया । वैशम्पायनजी कहते हैं – जनमजेय ! तत्पश्चात भगवान विष्णु ने लोकेश्वर इन्द्र से कहा – 'देवराज ! तुम सुमुख को अमृत दे दो और इसे देवताओं के समान बना दो । 'वासव ! इस प्रकार मातलि, नारद और सुमुख – ये सभी तुमसे इच्छानुसार अमृत का दान पाकर अपना यह अभीष्ट मनोरथ पूर्ण कर लें । तब देवराज इन्द्र ने गरुड़ के पराक्रम का विचार करके भगवान विष्णु से कहा – 'आप ही इसे उत्तम आयु प्रदान कीजिये'। भगवान विष्णु बोले – प्रभों ! तुम संपूर्ण जगत में जितने भी चराचर प्राणी है, उन सबके ईश्वर हो । तुम्हारी दी हुई आयु को बिना दी हुई करने ( मिटाने ) का साहस कौन कर सकता है ? तब इन्द्र ने उस नाग को अच्छी आयु प्रदान की, परंतु बलासुर और वृत्रासुर का विनाश करनेवाले इन्द्र ने उसे अमृतभोजी नहीं बनाया । इन्द्र का वर पाकर सुमुख का मुख प्रसन्नता से खिल उठा । वह विवाह करके इच्छानुसार अपने घर को चला गया । नारद और आर्यक दोनों ही कृतकृत्य हो महातेजस्वी देवराज की अर्चना करके प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने स्थान को चले गए ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में मातलि के द्वारा वर की खोज विषयक एक सौ चारवाँ अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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