महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 137 श्लोक 20-32
सप्तत्रिंशदधिकशततम (137) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
महाबहो ! समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ पुरुषसिंह अर्जुन से कहना कि तुम द्रौपदी के इच्छित पथ पर चलो। श्रीकृष्ण ! तुम तो अच्छी तरह जानते ही हो कि भीमसेन और अर्जुन कुपित हो जाएँ तो वे यमराज तथा अंत के समान भयंकर हो जाते हैं और देवताओं को भी यमलोक पहुंचा सकते हैं। जुए के समय द्रौपदी को जो सभा में जाना पड़ा और कौरव वीरों के सामने ही दुर्योधन और दु:शासन ने जो उसे गालियां दीं , वह सब भीमसेन और अर्जुन का ही तिरस्कार है । मैं पुन: उसकी याद दिला देती हूँ। जनार्दन ! तुम मेरी ओर से द्रौपदी और पुत्रों सहित पांडवों से कुशल पूछना और फिर मुझे भी सकुशल बताना । जाओ, तुम्हारा मार्ग मंगलमय हो, मेरे पुत्रों की रक्षा करना। वैशम्पायनजी कहते हैं– जनमजेय ! तदनंतर महाबाहु श्रीकृष्ण ने कुंती देवी को प्रणाम करके उनकी परिक्रमा भी की और फिर सिंह के समान मस्तानी चाल से वहाँ से निकल गए। फिर भीष्म आदि प्रधान कुरुवंशियों को उन्होनें विदा कर दिया और कर्ण को रथ पर बैठाकर सात्यकि के साथ वहाँ से प्रस्थान किया। दशार्हकुलभूषण श्रीकृष्ण के चले जाने पर सब कौरव आपस में मिलें और उनके अत्यंत अद्भुत एवं महान आश्चर्यजनक बल-वैभव की चर्चा करने लगे। वे बोले– यह सारी पृथ्वी मृत्युपाश में आबद्ध हो मोहाच्छ्न्न हो गई है । जान पड़ता है, दुर्योधन की मूर्खता से इसका विनाश हो जाएगा। उधर पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण जब नगर से निकलकर उपप्ल्व्य की ओर चले, तब उन्होनें दीर्घकाल तक कर्ण के साथ मंत्रणा की। फिर राधानन्दन कर्ण को विदा करके सम्पूर्ण यदुकुल को आनंदित करनेवाले श्रीकृष्ण ने तुरंत ही बड़े वेग से अपने रथ के घोड़े हँकवाये। दारुक के हाँकने पर वे महान् वेगशाली अश्व मन और वायु के समान तीव्र गति से आकाश को पीते हुए से चले। उन्होनें शीघ्रगामी बाज पक्षी की भांति उस विशाल पथ को तुरंत ही तय कर लिया और शाद्ङ्गधनुष धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण को उपप्ल्व्य नगर में पहुंचा दिया।
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