महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 147 श्लोक 24-43
सप्तचत्वारिंशदधिकशततम (147) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
तदन्तर एक समय मैं परशुरामजी के साथ द्वन्द्वयुद्ध के लिये समरभूमियों में उतरा। उन दिनों परशुरामजी भय से यहां के नागरिकों ने राजा विचित्रवीर्य को इस नगर से दूर हटा दिया था। वे अपनी पत्नियों में अधिक आसक्त होने के कारण राजयक्ष्मा रोग से पीडित हो मृत्यु को प्राप्त हो गये। तब बिना राजा के राज्य में देवराज इन्द्र ने वर्षा बंद कर दी, उस दशा में सारी प्रजा क्षुधा के भय से पीड़ित हो मेरे ही पास दौड़ी आयी। प्रजा बोली—शान्तनु के कुल की वृद्धि करनेवाले महाराज ! आपका कल्याण हो। राज्य की सारी प्रजा क्षीण होती चली जा रही है। आप हमारे अभ्युदय के लिये राजा होना स्वीकार करें और अनावृष्टि आदि ईतियों का भय दूर कर दें। गगांनन्दन ! आपकी सारी प्रजा अत्यन्त भयंकर रोगों से पीड़ित है। प्रजाओं से बहुत थोडे़ लोग जीवित बचे हैं। अत: आप उन सबकी रक्षा करें। वीर ! आप रोगों को हटावें और धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करें। आपके जीतेजी इस राज्य का विनाश न हो जाए।
भीष्म कहते हैं—प्रजाओं की यह करूण पुकार सुनकर भी प्रतिज्ञा की रक्षा और सदाचार का स्मरण करके मेरा मन क्ष्ुाब्ध नहीं हुआ। महाराज तदन्तर मेरी कल्याणमयी माता सत्यवती, पुरवासी, सेवक, पुरोहित, आचार्य और बहुतश्रुत ब्राह्मण अत्यन्त संतप्त हो मुझसे बार-बार कहने लगे—तुम्हीं राजा होओ, नहीं तो महाराज प्रतीप के द्वारा सुरक्षित राष्ट्र तुम्हारे निकट पहुंचकर नष्ट हो जायेगा। अत: महामते ! तुम हमारे हित के लिये राजा हो जाओ। उनके ऐसा कहने पर मैं अत्यन्त आतुर और दु:खी हो गया और मैंने हाथ जोड़कर उन सबसे पिता के महत्व की ओर दृष्टि रखकर की हुई प्रतिज्ञा के विषय में निवेदन किया। फिर माता सत्यवती से कहा—मां ! मैंने इस कुलकी वृद्धि के लिये और विशेषत: तुम्हें ही यहां ले आने के लिये राजा न होने और नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहने की बारंबार प्रतिज्ञा की है। अत: तुम इस राज्य का बोझ संभालने के लिये मुझे नियुक्त न करो।राजन् ! तत्पश्चात पुन: हाथ जोड़कर माता को प्रसन्न करने के लिये मैंने विनयपूर्वक कहा—अम्ब ! मैं राजा शान्तनु से उत्पन्न होकर कौरववंश की मर्यादा वहन करता हूं। अत: अपनी की हुई प्रतिज्ञा को झूठी नहीं कर सकता। यह बात मैंने बार-बार दुहरायी। इसके बाद फिर कहा—पुत्रवत्सले ! विशेषत: तुम्हारे ही लिये मैंने यह प्रतिज्ञा की थी। मैं तुम्हारा सेवक और दास हूं (मुझसे वह प्रतिज्ञा तोड़ने के लिये न कहो)। महाराज ! इस प्रकार माता तथा अन्य लोगों को अनुनय विनय के द्वारा अनुकूल करके माता के सहित मैंने महामुनि व्यास को प्रसन्न करके भाई की स्त्रियों से पुत्र उत्पन्न करने लिये उनसे प्रार्थना की। भरतकुलभूषण ! महर्षि ने कृपा की और उन स्त्रियों से तीन पुत्र उत्पन्न किये। तुम्हारे पिता अंधे थे, अत:नेत्रेन्द्रिय से हीन होने के कारण राजा न हो सके, तब लोकविख्यात महामना पाण्डु इस देश के राजा हुए। पाण्डु राजा थे और उनके पुत्र पाण्डव पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी हैं। अत:वत्स दुर्योधन ! तुम कलह न करो। आधा राज्य पाण्डवों को दे दो। मेरे जीते-जी मेरी इच्छा के विरूद्ध दूसरा कौन पुरूष यहां राज्य-शासन कर सकता है? ऐसा समझकर मेरे कथनकी अवहेलना न करो। मैं सदा तुमलोगों में शान्ति बनी रहने की शुभ कामना करता हूं। राजन ! मेरे लिए तुममें और पाण्डवों में कोई अन्तर नहीं है। तुम्हारे पिताका, गान्धारीका और विदुरका भी यही मत है। तुम्हें बडे़-बूढों की बातें सुननी चाहिये। मेरी बात पर शंका न करो, नहीं तो तुम सबको, अपनेको और इस भूतल को भी नष्ट कर दोगे।
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