महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 148 श्लोक 21-36

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अष्‍टचत्‍वारिंशदधिकशततम (148) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: अष्‍टचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-36 का हिन्दी अनुवाद

यह शास्‍त्र की आज्ञा का तो उल्‍लंघन करता ही है। धर्म और अर्थपर दृष्टि रखनेवाले अपने पिताकी भी बात नहीं मानता है। निश्‍चय ही एकमात्र दुर्योधन के कारण ये समस्‍त कौरव नष्‍ट हो रहे हैं । महाराज ! ऐसा कोई उपाय कीजिये, जिससे इनका नाश न हो । महामते ! जैसे चित्रकार किसी चित्रको बनाकर एक जगह रख देता है, उसी प्रकार आपने मुझको और धृतराष्‍ट्र को पहले से ही निकम्‍मा बनाकर रख दिया है। महाबाहो ! जैसे प्रजा‍पति प्रजा की सृष्टि करके पुन: उसका संहार करते हैं, उसी प्रकार आप भी अपने कुलका विनाश देखकर उसकी उपेक्षा न कीजिये। यदि इन दिनों विनाशकाल उपस्थित होनेके कारण आपकी बुद्धि नष्‍ट हो गयी हो तो मेरे और धृतराष्‍ट्र के साथ वन में पधारिये। अथवा जिसकी बुद्धि सदा छल-कपट में लगी रहती है उस परम दुर्बद्धि धृतराष्‍ट्र पुत्र दुर्योधन को शीघ्र ही बाँधकर पाण्‍डवोंद्वारा सुरक्षित इस राज्‍य का शासन कीजिये। नृपश्रेष्‍ठ ! प्रसन्‍न होइये । पाण्‍डव,कौरवों तथा अमित-तेजस्‍वी राजाओं का महान विनाश दृष्टिगोचर हो रहा है। ऐसा कहकर दी‍नचित्‍त विदुरजी चुप हो गये और विशेष चिन्‍ता में मग्‍न होकर उस समय बार-बार लंबी साँसें खींचने लगे। तदनन्‍तर राजा सुबलकी पुत्री गान्‍धारी अपने कुलके विनाशसे भयभीत हो क्रूरस्‍वभाववाले पाप‍बुद्धि पुत्र दुर्योधन के समस्‍त राजाओं के समक्ष क्रोधपूर्वक यह धर्म और अर्थसे युक्‍त बचन बोली-जो-जो राजा, महर्षि तथा अन्‍य सभासद इस राजसभा के भीतर आये हैं, वे सब लोग मन्‍त्री और सेवकोंसहित तुझ पापी दुर्योधन के अपराधोंको सुनें । मैं वर्णन करती हूँ।’हमारे यहाँ परम्‍परा से चला आनेवाला कुलधर्म यही है कि यह कुरूराज्‍य पूर्व-पूर्व अधिकारी के क्रम से उपभोगमें आवे (अर्थात पहले पिताके अधिकार में रहे, फिर पुत्रके, पिताके जीते-जी पुत्र का राज्‍यका अधिकारी नहीं हो सकता); परन्‍तु अत्‍यन्‍त क्रूर कर्म करनेवाले पापबुद्धि दुर्योधन ! तू अपने अन्‍याय से इस कौरवराज्‍यका विनाश कर रहा है। इस राज्‍यपर अधिकारी के रूप में परम बुद्धिमान धृतराष्‍ट्र और उनके छोटे भाई दूरदर्शी विदुर स्‍थापित किये गये थे । दुर्योधन ! इन दोनों का उल्‍लघंन करके तू आज मोहवंश अपना प्रभुत्‍व कैसे जमाना चाहता है। राजा धृतराष्‍ट्र और विदुर- ये दोनों महानुभाव भी भीष्‍म के जीते-जी पराधीन ही रहेंगे(भीष्‍म के रहते इन्‍हें राज्‍य लेने का कोई अधिकार नहीं है); परंतु धर्मज्ञ होने के कारण ये नरश्रेष्‍ठ महात्‍मा गंगानन्‍दन राज्‍य लेनेकी इच्‍छा ही नहीं रखते हैं। वास्‍तव में यह दुर्धर्ष राज्‍य महाराज पाण्‍डुका है। उन्‍हीं के पुत्र इसके अधिकारी हो सकते हैं, दूसरे नहीं। अत: यह सारा राज्‍य पाण्‍डवों का है ; क्‍योंकि बाप-दादों का राज्‍य पुत्र-पोत्रों के पास ही जाता है। कुरूकुल के श्रेष्‍ठ पुरूष सत्‍यप्रतिज्ञ एवं बुद्धिमान महात्‍मा देवव्रत जो कुछ कहते हैं, उसे राज्‍य और स्‍वधर्म का पालन करनेवाले हम सब लोगों को बिना काट-छांट किये पूर्णरूप से मान लेना चाहिये। अथवा इन महान् व्रतधारी भीष्‍मजी की आज्ञासे यह राजा धृतराष्‍ट्र तथा विदुर भी इस विष्‍य में कुछ कह सकते हैं सुदीर्घ्‍कालतक पालन करना चाहिये। ’कौरवों के इस न्‍यायत: प्राप्‍त राज्‍य का धर्मपुत्र तथा शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍मसे कर्तव्‍यकी शिक्षा लेते युधिष्ठिर ही शासन करें और वे राजा धृतराष्‍ट्र रहें।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अन्‍तर्गत भगवाद्यान पर्व में श्रीकृष्‍णवाक्‍यविषयक एक सौ अड़तालीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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