महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 156 श्लोक 1-23
षट्पञ्चाशदधिकशततम (156) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
वैशम्पायनजी कहते हैं—जनमेजय ! तदन्तर ध्रतराष्ट्रपुत्र दुर्योधन समस्त राजाओं के साथ शान्तनुनन्दन भीष्मके पास जा हाथ जोडकर इस प्रकार बोला --।‘ पितामह ! कितनी ही बडी सेना क्यों न हो १ किसी योग्य सेनापतिके बिना युद्धमें जाकर चींटियोंकी पंक्ति के समान छिन्न-भिन्न् हो जाती है ।‘दो पुरूषों की बुद्धि कभी समान नहीं होती। यदि दोनों ओर योग्य सेनापति हों तो उनका शौर्य एक-दूसरे की होडमें बढता है ।‘महामते ! सुना जाता है कि समस्त ब्राह्रम्णोंने अपनी कुशमयी ध्वजा फहराते हुए पहले भी अमिततेजस्वी हैहय-वंशके क्षत्रियों पर आक्रमण किया था ।‘पितामह ! उस समय ब्रह्रम्णों के साथ वैश्यों और शूद्रोंने भी उनपर धावा किया था । एक ओर तीनों वर्णके लोग थे और दूसरी ओर चुने हुए श्रेष्ठ क्षत्रिय । ‘तदन्तर जब युद्ध आरम्भ हुआ, तब तीनों वर्णोंके लोग बारंबार पीठ दिखाकर भागने लगे । यद्यपि इनकी सेना अधिक थी तो भी क्षत्रियोंने एकमत होकर उनपर विजय पायी । ‘पितामह ! तब उन श्रेष्ठ ब्राह्रम्णों ने क्षत्रियों से ही पूछा हमारी पराजय का क्या कारण है ?उस समय धर्मज्ञ क्षत्रियोंने उनसे यथार्थ कारण बता दिया ।वे बोले—हमलोग एक परम बुद्धिमान् पुरूषको सेनापति बनाकर युद्धमें उसीका आदेश सुनते और मानते हैं। परंतु आप सब लोग पृथक-पृथक अपनी ही बुद्धिके अधीन हो मनमाना बर्ताव करते हैं। । यह सुनकर उन ब्रह्रम्णों ने एक शूरवीर एवं नीतिनिपुण ब्राह्रम्ण् को सेनापति बनाया और क्षत्रियोंपर विजय प्राप्त की । इस प्रकार जो लोग किसी हितैषी, पापरहित तथा युद्धकुशल शूरवीर को सेनापति बना लेते हैं, वे संग्राम में शत्रुओं पर अवश्य विजय पाते हैं। आप सदा मेरा हित चाहनेवाले तथा नीतिमें शुक्राचार्य के समान हैं। आपको आपकी इच्छाके बिना कोई मार नहीं सकता। आप सदा धर्ममें ही स्थित रहते हैं, अत: हमारे प्रधान सेनापति हो जाइये ।जैसे किरणोंवाले तेजस्वी पदर्थों के सूर्य, वृक्ष और औषधियों के चन्द्रमा, यक्षोंके कुबेर, देवताओंके इन्द्र, पर्वतोंके मेरू, पक्षियोंके गरूड, समस्त देवयोनियोंके कार्तिकेय और वसुओंके अग्निदेव अधिपति एवं संरक्षक हैं (उसी प्रकार आप हमारी समस्त सेनाओंके अधिनायक और संरक्षक हो) । इन्द्र के द्वारा सुरक्षित देवताओंकी भांति आपके संरक्षणमें रहकर हमलोग निश्चय ही देवगणोंके लिये भी अजेय हो जायेंगे ।जैसे कार्तिकेय देवताओंके आगे-आगे चलते हैं, वैसे ही आप हमारे अगुआ हों। जैसे बछडे साँड के पीछे चलते हैं, उसी प्रकार हम आपका अनुसरण करेंगे ।
भीष्म ने कहा – भारत ! तुम जैसा कहते हो वह ठीक है, पर मेरे लिये जैसा तुम हो, वैसे ही पाण्डव हैं । नरेश्वर ! मैं पाण्डवोंको उनके पूछनेपर अवश्य ही हितकी बात बताउंगा और तुम्हारे लिये युद्ध करूंगा । ऐसी ही मैंने प्रतिज्ञा की है । मैं इस भूतलपर नरश्रेष्ठ कुन्तीपुत्र अर्जुनके सिवा दूसरे किसी भी योद्धोको अपने समान नहीं देखता हूं । महाबुद्धिमान् पाण्डुकुमार अर्जुन अनेक दिव्यास्त्रों का ज्ञान रखते हैं ; परंतु वे मेरे सामने आकर प्रकट रूपमें कभी युद्ध नहीं कर सकते । अर्जुनकी ही भाँति मैं भी यदि चाहूं तो अपने शस्त्रों के बलसे देवता, मनुष्य, असुर तथा राक्षसोंसहित इस सम्पूण्र जगत् को क्षणभर में निर्जीव बना दूँ ।परंतु जनेश्वर ! मैं पाण्डुके पुत्रोंकी किसी तरह हत्या नहीं करूंगा । कुरूनन्दन ! यदि पाण्डव इस युद्धमें मुझे पहले ही नहीं मार डालेंगे तो मैं अपने अस्त्रोंके प्रयोगद्वारा प्रतिदिन उनके पक्षके दस हजार योद्धाओं को वध करता रहूंगा, मैं इस प्रकार इनकी सेना का संहार करूंगा । राजन् ! मैं अपरी इच्छाके अनुसार एक शर्तपर तुम्हारा सेनापति होऊँगा। उसके बदले दूसरी शर्त नहीं मानूगां । उस शर्तको तुम मुझसे यहाँ सुनलो।
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