महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 165 श्लोक 23-33
पञ्चषष्टयधिकशततम (165) अध्याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्या पर्व)
भरतश्रेष्ठ ! मैं तो तुम्हारी सम्पूर्ण सेनाका प्रधन सेनापति ही हूं। अत: पाण्डवों को कष्ट देकर शत्रुसेनाके सैनिकोंका संहार करूंगा। मैं अपने मुंहसे अपने ही गुणोंका बखान करना उचित नहीं समझता। तुम तो मुझे जानते हो । शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ भोजवंशी कृतवर्मा तुम्हारे दलमें अतिरथी वीर हैं। ये युद्धमें तुम्हारे अभीष्ट अर्थकी सिद्धी करेंगे। इसमें संशय नहीं है । बडे-बडे शस्त्रवेत्ता भी इन्हें परास्त नहीं कर सकते । इनके आयुध अत्यन्त दृढ हैं और ये दूरके लक्ष्यको भी मार गिराने में समर्थ हूं। जैसे देवराज इन्द्र दानवोंका संहार करते हैं, उसी प्रकार ये भी पाण्डवोंकी सेना का विनाश करेंगे। महाधनुर्धर मद्रराज शल्य को भी मैं अतिरथी मानता हूं, जो प्रत्येक युद्ध में सदा भगवान श्रीकृष्ण के साथ स्पर्धा रखते हैं। वे अपने सगे भानजों नकुल-ब सहदेवको छोड़कर अन्य सभी पाण्डव महारथियोंसे समरभूमिमें युद्ध करेंगे। तुम्हारी सेनाके इन वीरशिरोमणि शल्यको अतिरथी ही समझता हूं। ये समुद्रकी लहरोंके समान अपने बाणोंद्वारा शत्रु पक्षके सैनिकोंको डूबाते हुए से युद्ध करेंगे। सोमदेवके पुत्र महाधनुर्धर भूरिश्रवा भी अस्त्रविधाके पण्डित और तुम्हारे हितैषी सुदृढ हैं। ये रथियोंके यूथपतियोंके भी यूथपति हैं, अत:तुम्हारे शत्रुओंकी सेना का महान संहार करेंगे। महाराज ! सिन्धुराज जयद्रथको मैं दो रथियोंके बराबर समझता हूं। ये बडे पराक्रमी तथा रथी योद्धाओंमें श्रेष्ठ हैं। राजन् ! ये भी समरागंण में पाण्डवोंके साथ युद्ध करेंगे। नरेश्वर ! द्रौपदीहरण के समय पाण्डवोंने इन्हें बहुत कष्ट पहुंचाया था। उस महान क्लशको याद करके शत्रु वीरों का नाश करनेवाले जयद्रथ अवश्य युद्ध करेंगे। राजन् !उस समय इन्होंने कठोर तपस्या करके युद्धमें पाण्डवोंसे मुठभेड कर सकनेका अत्यन्त दुर्लभ वर प्राप्त किया था। तात ! ये रथियोंमें श्रेष्ठ जयद्रथ युद्धमें उस पुराने वैरको याद करके अपने दुश्मन प्राणियोंकी भी बाजी लगाकर पाण्डवों के साथ संग्राम करेंगे।
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