महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 21 श्लोक 1-12
एकविंश (21) अध्याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)
भीष्म के द्वारा दु्रपद के पुरोहित बात का समर्थन करते हुए अर्जुन की प्रशंसा करना, इसके विरूद्ध कर्ण के आक्षेपपूर्ण वचन तथा धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म की बात का समर्थन करते हूए दूत को सम्मानित करके विदा करना
वैशम्पायन जी कहते है - जनमेजय ! पुरोहित की यह बात सुनकर बुद्धि में बडे-बड़े महातेजस्वी भीष्म ने समय के अनुरूप जन की पूजा करके इस प्रकार कहा ‘। ब्राह्मण ! सब पाण्डव भगवान् श्रीकृष्ण के साथ सकुशल है, यह सौभाग्य की बात है । उनके बहुत से सहायक है और वे धर्म में भी तत्पर है, यह और भी सौभाग्य तथा हर्ष का विषय है । ‘कुरूकुल को आनन्दित करने वाले पांचो भाई पाण्डव सन्धि की इच्छा रखते है, यह सौभाग्य का विषय है । वे अपने वन्धु बान्धवों के साथ युद्ध में मन नही लगा रहे है, यह भी सौभाग्य की बात है । ‘ आपने जितनी बाते कही है, वे सब सत्य है य इसमे संशय नही है । परंतु आपकी बातें बड़ी तीखी है । यह तीक्ष्णता ब्राह्मण स्वाभाव के कारण ही है, ऐसा मुझे प्रतीत होता है । ‘ निः संदेह पाण्डवों को वन में और यहां भी कष्ट उठाना पडा है । उन्हे धर्मतः अपनी सारी पैतृक सम्पŸिा पाने का अधिकार प्राप्त हो चुका है । इसमें भी कोई संशय नही है ।‘ कुन्तीपुत्र किरीटधारी महारथी अर्जुन बलवान् तथा अस्त्र वि़द्या में निपुण है । कौन सा ऐसा वीर है, जो युद्ध में पाण्डु पुत्र अर्जुन का वेग सह सके । साक्षात् वज्रधारी इन्द्र भी युद्ध में उनका सामना नहीं कर सकते य फिर दूसरे धनुर्धरो की बात ही क्या है १ मेरा तो ऐसा विश्वास है कि अर्जुन तीनों लोंको का सामना करने में समर्थ है‘। भीष्म जी इस प्रकार कह ही रहे थे कि कर्ण ने दुर्योधन की ओर देखकर क्रोध से धृष्टतापूर्वक आक्षेप करते हुए ( भीष्म के कथन की अवहेलना करक ) यह बात कही । ‘ ब्रह्मन् ! इस लोक में जो घटना बीत चुकी है, वह किसी को अज्ञात नही है, उसको दोहराने से या बारंबार उस पर भाषण देने से क्या लाभ है । ‘ पहले की बात है, शकुनि ने दुर्योधन के लिये पाण्डुपुत्र युधिष्ठर को द्यूत क्रिडा में परास्त किया था और वे उस जुए की शर्त के अनुसार वन में गये थे । ‘ युधिष्ठर उस शर्त का पालन करके अपना पैतृक राज्य चाहते हो, ऐसी बात नही है । वे तो मूर्खे की भांति मत्स्य और पाचांल देश की सेना के भरोसे राज्य लेना चाहते है । ‘ विद्व्न् !दुर्योधन किसी के भय से अपने राज्य का आधा कौन कहे चैथाई भाग नही देेगे य परंतु धर्मानुसार तो वे शत्रु को भी समूची पृथ्वी तक दे सकते है । [१]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ १. यहाँ अनेक शब्द का यह तात्पर्य है कि अर्जुन इतने वेग से युद्ध करते थे कि वे रण भूमि में अनेक से दिखायी देते थे । द्रोणपर्व के ८९ वें अध्याय में युद्ध के प्रसंग में ऐसा वर्णन भी मिलता है - महाराज आपके सैनिको को सब ओर अर्जुन ही अर्जुन दिखायी देते थे । वे बार बार ‘ अर्जुन यह है, अर्जुन कहां है १ अर्जन यह खडा है ‘ इस प्रकार चिल्ला उठते थे । इस भ्रम में पड़कर उनमें से कोई-कोई तो आपस में और कोई अपने पर ही प्रहार कर बैठते थे । उस समय काल के वशीभूत हो वे सोर संसार को अर्जुनमय ही देखने लगे थे ।