महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 22 श्लोक 22-32
द्वाविंश (22) अध्याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)
पर्वतों पर रहने वाले, दुर्गम भूमि के निवासी योद्धा जो कुल जाति की दृष्टि से बहुत शुद्ध है, वे तथा मलेच्छ भी नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र एवं बल पराक्रम से सम्पन्न हो पाण्डवों की सहायता के लिये आये है और उनके शिविर में निवास करते है । पाण्डव देश के महामना राजा, जो संसार के सुविख्यात वीर, अनुपतम पराक्रम और तेज से समपन्न तथा युद्ध में देवराज इन्द्र के समान है, पाण्डवों की सहायता के लिये बहुत से प्रमुख योद्धाओं के साथ पधारे है । जिसने द्रोणाचार्य, अर्जुन, श्रीकृष्ण, कृपचार्य तथा भीष्म से भी अस्त्र विद्या सीखी है तथा जिस एकमात्र वीर को श्रीकृष्ण पुत्र प्रद्युम्न के समान पराक्रमी बताय जाता है, वह सात्यकि भी सुनता हूँ, पाण्डव की सहायता के लिये आकर टिका हुआ है । (युधिष्ठर के राजसूयज्ञ मे चेदि करूष देश के भ्ूापाल सब प्रकार की तैयारी संगठित होकर आये थे । उन सब के बीच में चेदिराज शिशुपाल अपनी दिव्य शोभा से तपते हुए सूर्य की भांति प्रकाशित हो रहा था । युद्ध में उस वेग को रोकना असम्भव था । धनुष की प्रत्यंचा खींचने वाले भूमण्डल के सभी योद्धा में शिशुपाल एक श्रेष्ठतम वीर था । यह सब समझकर भगवान् श्रीकृष्ण ने वहां चोदेदेशीय क्षत्रिय के सम्पूर्ण उत्साह को नष्ट करके हठपूर्वक बडे बेग से शिशुपाल को मार डाला । कुरूराज आदि सब नरेश जिसका सम्मान बढ़ाते थे उस शिशुपाल की ओर दृष्टिपात करके पाण्डवों के यश और मान की बुद्धि उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने उसे ही मार डाला । सुग्रीव आदि घोड़ो से जुते हुए रथ पर आरूढ होने वाले श्रीकृष्ण को असहा मानकर चेदिराज शिशुपाल के सिवा दूसरे भूपाल उसी प्रकार पलायन कर गये, जैसे सिंह को देखते ही जंगल क्षुद्र पशु भाग जाते है । जितने द्वेरथ युद्ध में विजय की आशा रखकर भगवान् श्रीकृष्ण का विरोधी हो बडे वेग से उन पर धावा किया, वह शिशुपाल श्रीकृष्ण के हाथ से मारा जाकर प्राण शून्य हो सदा के लिये इस प्रकार धरती पर सो गया, मानो कनेर का वृक्ष हवा के वेग से उखडकर धराशायी हो गया हो । संजय पाण्डवों के लिए किये हुए श्रीकृष्ण के उस पराक्रम का वतान्त मेरे गुप्तचर नु मुझे बताया था । गसवल्गणे ! श्री हरि के उन वीरोचित कर्मो को बारंबार याद करके मुझे शान्ति नहीं मिल रही है ॥३0जिनके अगामी वृष्णसिंह भगवान् वासुदेव है, उन पाण्डवों का आक्रमण कभी भी दूसरा कोई शत्रु नही सह सकता । श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनो एक रथ पर एकत्र हो गये है, यह सुनकर तो मेरा हृृदय भय से काप उठता है । संजय ! यदि मेरा मन्दबुद्धि पुत्र उन दोनों से युद्ध करने के लिये न जाय, तभी वह कल्याण का भागी हो सकता है ! अन्यथा ये दोनों वीर कौरवों को उसी प्रकार भस्म करे देगें जैसे इन्द्र और विष्णु दैत्य सेना का संहार कर डालते है ।
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