महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 23 श्लोक 16-25
त्रयोविंश (23) अध्याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)
पुत्रों सहित राजा धृतराष्ट्र ब्राह्मणो के प्रति किये गये अपराधों की उपेक्षा तो नहीं करते ब्राह्मणांे तो सदा वृŸिा दी जाती है, वह स्वर्गलोक में पहुँचने का मार्ग हैय अतः राजा उस वृŸिा की उपेक्षा या अवहेलना तो नही करते है । ब्राह्मणों को दी हुई जविका वृŸिा की रक्षा पर लोक को प्रकाशित करने वाली उŸाम ज्योति है और इस जीव - जगत में यह उज्जवल यश का विस्तारकरने वाली हे । यह नियम विधाता ने ही प्रजा के हित के लिये रचा रक्खा है । मन्द बुद्धि कौरव लोभ वश ब्राह्मणो की जीविका वृŸिा के अपरहण रूप दोष को काबू में नही रखेगे तो कौरवकुल का सर्वथा निवाश हो जायेगा । क्या पुत्रो सहित राजा धृतराष्ट्र मन्त्रि वर्ग को भी जीवन निर्वाह के योग्य वृŸिा देने की इच्छा रखते है । कही ऐसा तो नही होता कि वे भेद जीविका चलाना चाहते हो ( शत्रुओं ने उन्हे फोड लिया हो और वे उन्हीं के दिये हुए धन से जीवन निर्वाह करना चाहते हों ) वे सृदृढ के रूप में होते हुए भी एकमत होकर शत्रु तो नही बन गये है । तात ! संजय कही सब कौरव मिलकर पाण्डवों के किसी दोष की चर्चा तो नही करते है १ पुत्रसहित द्रोणाचार्य और वीर कृपाचार्य हमलोंगो पर किन्ही दोषो का आरोप तो नही करते है । क्या कभी सब कौरव एकत्र हो पुत्रसहित धृतराष्ट्र के पास जाकर हमें राज्य देने विषय में कुछ कहते है १ क्या राज्य में लुटेरो के दलो को देखकर वे कभी संग्राम विजयी अर्जुन को भी याद करते है । संजय प्रत्यंचा को बारम्बार हिलाकर और कानो तक खींच कर अंगुलियो के अग्रभाग से जिनका संधान किया जाता है तथा जो गाण्डीव धनुष से छूटकर मेघ की गर्जना के समान सन सनतो हुए सीधे लक्ष्य तक पहुंच जाते है, अर्जन के उन बाणो को कौरव लोग बराबर याद करते है न । मैने इस पृथ्वी पर अर्जुन से बढ़कर या उनके सामान दूसरे किसी योद्धा को नही देखा हैय कयोंकि वे जब वे एक बार अपने हाथो से धनुष पर-संधान करते है, तब उससे सुन्दर पंख और पैनी धारवाले इकसठ तीखे बाण प्रकट होते है । जैसे मस्तक से मद की धारा बहाने वाला गजराज सरकंडो से भरे हुए खानों में निर्भय विचरता है, उसी प्रकार वेग शाली वीर भीमसेन हाथ में गदा लिये रणभूमि में शत्रुरयको कम्पित करते हुए विचरण करते है । तथा कौरवलोग उन्हे भी कभी याद करते है । जिस में दात पीसकर अस्त्र - शस्त्र चलाये जाते है, उस भयंकर युद्ध में माद्रीनन्दन सहदेव ने दाहिने और बांये हाथ से बाणो की वर्षा करके अपना सामाना करने के लिये आये हुए कलिंगदेशीय योद्धाओं को परास्त किया था । क्या इस महाबली वीर को भी कौरव कभी याद करते है । संजय ! पहले राजसूर्य यज्ञ में तुम्हारे सामने ही शिवि और त्रिगर्त देश के वीरों को जीतने के लियेइस नकुल को भेजा गया था, परन्तु इसने सारी पश्चिम दिशा को जीतकर मेरे अधीन कर दिया । क्या कौरव इस वीर माद्री कुमार का भी स्मरण करते है ।
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