महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 27 श्लोक 23-27
सप्तविंश (27) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)
महाराज! जो बिना व्याधि के ही उत्पन्न होता है, स्वाद में कड़ुआ है, जिसके कारण सिर में दर्द होने लगता है, जो यश का नाशक और पापरूप फल को प्रकट करने वाला है, जो सज्जन पुरूषों के ही पीने योग्य है, जिसे असाधु पुरूष नहीं पाते हैं, उस क्रोध को आप पी लीजिये और शान्त हो जाइये जो पाप की जड़ है, उस क्रोध की इच्छा कौन करेगा? आपकी दृष्टि में तो क्षमा ही सबसे श्रेष्ठ वस्तु है, वे भोग नहीं, जिनके लिये शान्तनुनन्दन भीष्म तथा पुत्र सहित आचार्य द्रोण की हत्या की जाय। कुन्तीनन्दन! ऐसा कौन-सा सुख हो सकता है, जिसे आप कृपाचार्य,शल्य, भूरिश्रवा, विकर्ण, विविंशति, कर्ण तथा दुर्योधन- इन सबका वध करके पाना चाहते हैं, कृपया बताइये। राजन्! समुद्रपर्यन्त इस सारी पृथ्वी को पाकर भी आप जरा-मृत्यु, प्रिय-अप्रिय तथा सुख-दु:ख से पिण्ड नहीं छुड़ा सकते। आप इन सब बातों को अच्छी तरह जानते हैं; अत: मेरी प्रार्थना है कि आप युद्ध न करें। यदि आप अपने मन्त्रियों की इच्छा से ही ऐसा पापमय युद्ध करना चाहते हैं तो अपना सर्वस्व उन मन्त्रियों को ही देकर वानप्रस्थ ग्रहण कर लीजिये; परंतु अपने कुटुम्ब का वध करके देवयान मार्ग से भ्रष्ट न होइये।
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