महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 48 श्लोक 16-25
अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)
‘जिस समय दुर्योधन हाथ में गदा लिये रथपर बैठे हुए भयानक वेगवाले अमर्षशील पाण्डुनन्दन भीमसेन को क्रोध-रूप विष उगलते देखेगा, उस समय युद्ध के परिणाम को सोचकर उसे महान् पश्र्चाताप करना पडे़गा । ‘जब भीमसेन कवच धारण करके शत्रुपक्ष के वीरों का नाश करते हुए अपने पक्ष के लोगों के लिये भी अलक्षित हो सेना के आगे-आगे तीव्र वेग से बढे़ंगे और यमराज के समान विपक्षी सेना का संहार करने लगेंगे, उस समय अत्यन्त अभिमानी दुर्योधन को मेरी ये बातें याद आयेंगी । ‘जब भीमसेन पर्वताकार प्रतीत होने वाले बडे़-बडे़ गज-राजों को गदा के आघात से उनका कुम्भस्थल विदीर्ण करके मार गिरायेंगे और वे मानो घड़ों से खून उंडे़ल रहे हों, इस प्रकार मस्तक से रक्त की धारा बहाने लगेंगे, उस समय दुर्योधन जब यह दृश्य देखेगा, तब उसे युद्ध छेड़ने के कारण बड़ा भारी पश्र्चाताप होगा । ‘जब भयंकर रूपधारी भीमसेन हाथ में गदा लिये तुम्हारी सेना में घुसकर धृतराष्ट्र पुत्रों के पास जाकर उनका उसी प्रकार संहार करने लगेंगे, जैसे महान् सिंह गौओं के झुंड में घुसकर उन्हें दबोच लेता हैं, तब दुर्योधन को युद्ध के लिये बड़ा पछतावा होगा । ‘जो भारी से भारी भय आने पर भी निर्णय रहते हैं, जिन्होंने सम्पूर्णअस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की है तथा जो संग्रामभूमि में शत्रुसेना को रौंद डालते हैं, वे ही शूरवीर भीमसेन जब एकमात्र रथपर आरूढ़ हो गदा के आघात से असंख्य रथ समूहों तथा पैदल सैनिकों को मौत के घाट उतारते और छींको के समान फंदों में बड़े-बडे़ नागों को फंसाकर मरे हुए बछड़ों के समान उन्हें बलपूर्वक घसीटते हुए दुर्योधन की सेना को वैसे ही छिन्न-छिन्न करने लगेंगे, जैसे कोई फरसे से जंगल काट रहा हो, उस समय धृतराष्ट्र पुत्र मन-ही-मन यह सोचकर पछतायेगा कि मैंने युद्ध छेड़कर बड़ी भारी भूल की है । ‘जब दुर्योधन यह देखेगा कि जैसे घास-फूस के झोपड़ों का गांव आग से जलकर खाक हो जाता है, उसी प्रकार धृतराष्ट्र-के अन्य सभी पुत्र भीमसेन की क्रोधाग्नि से दग्ध हो गये, मेरी विशाल वाहिनी बिजली की आग से जली हुई पकी खेती के समान नष्ट हो गयी, उसके मुख्य-मुख्य वीर मारे गये, सैनिकों ने पीठ दिखा दी, सभी भय से पीड़ित हो रणभूमि से भाग निकले, प्राय: समस्त योद्धा साहस अथवा धृष्टता खो बैठे तथा भीमसेन के अस्त्र-शस्त्रों की आग से सब कुछ स्वाहा हो गया; उस समय उसे युद्ध के लिये बड़ा पछतावा होगा । ‘रथियों में श्रेष्ठ और विचित्र रीति से युद्ध करने वाले नकुल जब दाहिनी हाथ में लिये हुए खड्ग से तुम्हारें सैनिकों के मस्तक काट-काटकर धरती पर उनके ढेर लगाने लगेंगे और रथी योद्धाओं को यमलोक भेजना प्रारम्भ करेंगे, उस समय धृतराष्ट्र पूत्र दुर्योधन युद्ध का परिणाम सोचकर शोक से संतप्त हो उठेगा । ‘सुख भोगने के योग्य वीरवर नकुल ने दीर्घकाल तक वनों में रहकर जिस दु:ख-शय्यापर शयन किया है, उसका स्मरण करके जब वह क्रोध में भरे हुए विषैले सर्प की भांति विष उगलने लगेगा, उस समय धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन को युद्ध छेड़ने-के कारण पछताना पडे़गा ।
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