महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 48 श्लोक 50-61
अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)
‘जब युद्ध में मधुवंशी सात्यकि के चार श्वेत घोड़ों से जुते हुए सुवर्णमय रथ को पापात्मा मन्दबुद्धि दुर्योधन देखेगा, तब उसे अवश्य संताप होगा । ‘जब सुवर्ण और मणियों से प्रकाशित होने वाले मेरे भयंकर रथ को जिसमें चार श्वेत अश्व जुते होंगे, जिस पर वानरध्वजा फहरा रही होगी तथा साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण जिस पर बैठकर सारथिका कार्य संभालते होंगे, अकृतात्मा मन्दबुद्धि दुर्योधन देखेगा, तब मन-ही-मन संतप्त हो उठेगा । ‘महान् संग्राम के समय जब मैं गाण्डीव धनुष की डोरी खींचूंगा, उस समय मेरे हाथों की रगड़ से वज्रपात के समान अत्यन्त भयंकर आवाज होगी, मन्दबुद्धि दुर्योधन जब गाण्डवी की उस उग्र टंकार को सुनेगा तथा रणस्थली के अग्र-भाग में मेरी बाण वर्षा से फैले हुए अन्धकार में इधर-उधर भागती हुई गौओं की भांति अपनी सेना को युद्ध से पलायन करती देखेगा, तब दुष्ट सहायकों से युक्त उस दुर्बुद्धि एवं मूढ़ धृतराष्ट्र पुत्र के मन में बड़ा संताप होगा । ‘मेरे गाण्डीव धनुष की प्रत्यञ्चा से छोडे़ हुए तीखी धारवाले सुन्दर पंखों से युक्त भयंकर बाण समूह मेघ से निकली हुई अत्यन्त भयानक विघुत की चिनगारियों के समान जब युद्ध-भूमि में शत्रुओं पर पडे़ंगे और उनकी हड्डियों को काटते तथा मर्मस्थानों को विदीर्ण करते हुए सहस्त्र-सहस्त्र सैनिकों को मौत के घाट उतारने लगेंगे, साथ ही कितने ही घोड़ों, हथियों तथा कवचधारी योद्धाओं के प्राण लेना प्रारम्भ करेंगे, उस समय जब धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन यह सब देखेगा, तब युद्ध छेड़ने की भूल के कारण वह बहुत पछतायेगा । ‘युद्ध में दूसरे योद्धा जो बाण चलायेंगे, उन्हें मेरे बाण टक्कर लेकर पीछे लौटा देंगे। साथ ही मेरे दूसरे बाण शत्रुओं-के शरसमूह को तिर्यग् भाव से विद्ध करके टुकडे़-टुकडे़ कर डालेंगे। जब मन्दबुद्धि दुर्योधन यह सब देखेगा, तब उसे युद्ध छेड़ने के कारण बड़ा पश्र्चात्ताप होगा । ‘जब मेरे बाहुबल से छूटे हुए विपाठ नामक बाण युवक योद्धाओं के मस्तकों को उसी प्रकार काट-काटकर ढेर लगाने लगेंगे, जैसे पक्षी वृक्षों के अग्रभाग से फल गिराकर उनके ढेर लगा देते हैं, उस समय यह सब देखकर दुर्योधन को बड़ा पश्र्चात्ताप होगा । ‘जय दुर्योधन देखेगा कि उसके रथोंसे, बड़े-बड़े गजोंसे और घोड़ोंकी पीठ परसे भी असंख्य योद्धा मेरे बाणोंद्वारा मारे जाकर समराङ्गणमें गिरते चले जा रहे हैं, तब उसे युद्धके लिये भारी पछतावा होगा । ‘दुर्योधनको जब यह दिखायी देगा कि उसके दूसरे भाई शत्रुओं की बाणवर्षा के निकट न जाकर उसे दूरसे देखकर ही अदृश्य हो रहे है, युद्धमें कोई पराक्रम नहीं कर पा रहे हैं, तब वह लड़ाई छेड़नेके कारण मन-ही-मन बहुत पछतायेगा । ‘जब मैं सायकोंकी अविच्छिन्न वर्षा करते हुए मुख फैलाये खड़े हुए काल की भांति अपने प्रज्वलित बाणों की बौछारोंसे शत्रुपक्ष के झुंड के झुंड पैदलों तथा रथियोंके समूहों को छिन्न-भिन्न करने लगूंगा, उस समय मंदबुद्धि दुर्योधनको बड़ा संताप होगा । ‘मंदबुद्धि धृतराष्ट्र जब यह देखेगा कि सम्पूर्ण दिशाओं में दौड़नेवाले मेरे रथके द्वारा उड़ायी हुई धूलिसे आच्छादित हो उसकी सारी सेना धराशायी हो रही है और मेरे गाण्डीव धनुषसे छूटे हुए बाणोंद्वारा उसके समस्त सैनिक छिन्न-भिन्न होते चले जा रहे हैं, तब उसे बड़ा पछतावा होगा ।
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