महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 51 श्लोक 18-32
एकपञ्चाशत्तम (51) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)
वह क्रूर और क्रोधी है। टूट भले ही जाय, पर झुक नही सकेगा। सदा टेढी़ निगाह से ही देखता है। उसकी भौहें क्रोध के कारण परस्पर गुंथी रहती हैं। ऐसा भीमसेन कैसे शान्त हो सकेगा? गोरे रंग का वह शूरवीर भीमसेन ताड़ के समान ऊंचा है। ऊंचाई मे वह अर्जुन से एक बित्ता अधिक है, बल में उसकी समता करने वाला दूसरा कोई नहीं है । वह स्पष्ट नहीं बोलता। उसकी आंखें सदा मधु के समान पिङ्गल वर्ण की दिखायी देती हैं। वह महाबली मध्यम पाण्डव अपने वेग से घोड़ों को भी लांघ सकता है और बल से हाथियों-को भी पराजित कर सकता हैं । मैंने बाल्यकाल में ही व्यासजी के मुख से पहले इस पाण्डु पुत्र के अद्भुत रूप और पराक्रम का यथार्थ वर्णन सुना था । निष्ठुर पराक्रम प्रकट करने वाला यह भयंकर भीमसेन समरभूमि में कूपित होकर लौहदंड से मेरे रथों, हाथियों, पैदल मनुष्यों और घोड़ों का भी संहार कर डालेगा । तात संजय! सदा क्रोध में भरा रहने वाला अमर्षशील भीमसेन प्रहार करने वाले योद्धाओं में सबसे श्रेष्ठ है। मेरे पुत्रों के प्रतिकुल आचरण करते समय मैंने पहले कई बार उसका अपमान किया है । उसकी लोहे की गदा सीधी, मोटी, सुन्दर पार्श्वभाग वाली और सुवर्ण से विभूषित है, वह शत-शत वज्रपात के समान बडे जोर से आवाज करती और एक ही चोट में सैकड़ों को मार डालती है। मेरे बेटे उसका आघात कैसे सह सकेंगे? तात! भीमसेन एक दुर्गम अपार समुद्र है, इसे पार करने के लिये न तो कोई नौका है और न इसकी कहीं थाह ही है; बाण ही इसका वेग है, तो भी मेरे मूर्ख पुत्र इस भीमसेन-मय दुर्गम समुद्र को पार करना चाहते हैं । मैं चीख्ता-चिल्लाता रह जाता हूं, परंतु अपने को पण्डित समझने वाले ये मुर्ख पुत्र मेरी बात नहीं सुनते हैं। ये केवल वृक्ष की ऊंची शाखा में लगे हुए शहद को देखते हैं, वहां से गिरने का तो भयानक खटका है, उसकी ओर इनका ध्यान नहीं है । जैसे महान् मृग सिंह से भिड़ जायं, उसी प्रकार जो लोग उस मनुष्यरूपी यमराज के साथ लड़ने के लिये युद्धभूमि में उतरेंगे, उन्हें विधाता ने ही मृत्यु के लिये प्रेरित करके भेजा है, ऐसा मानना चाहिये । तात संजय! भीमसेन की गदा छीके पर रखने योग्य, चार हाथ लंबी और छ: कोणों से विभूषित है। उस अत्यन्त तेजस्विनी गदा का स्पर्श भी दु:खदायक है। जब भीम उसे मेरे पुत्रों पर चलायेगा, तब वे उसका आघात कैसे सह सकेंगे? भीमसेन जब क्रोधजनित आंसू बहाता और बारंबार अपने ओष्ठप्रान्त को चाटता हुआ गदा घुमा-घुमाकर हाथियों के मस्तक विदीर्ण करने लगेगा, सामने भयंकर गर्जना करने-वाले गजराजों को लक्ष्य करके उनकी ओर दौडे़गा, प्रतिकूल दिशा की ओर भागने वाले मदोन्मत्त हाथियों की गर्जना के उत्तर में स्वयं भी सिंहनाद करेगा और मेरे रथियों की सेनाओं में घुसकर श्रेष्ठ वीरों को चुन-चुनकर मारने लगेगा, उस समय अग्नि के समान प्रज्वलित होने वाले भीम के हाथ से मेरे पुत्र कैसे जीवित बचेंगे? महाबाहु भीम मेरी सेना में घुसकर अपने रथ के लिये रास्ता बनाता, मेरी विशाल वाहिनी को खदेड़ता और हाथ में गदा लिये नृत्य-सा करता हुआ जब आगे बढे़गा, तब प्रलय-काल का दृश्य उपस्थित कर देगा ।
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