महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 58 श्लोक 20-29
अष्टपञ्चाशत्तम (58) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)
प्रहार करने वालों में श्रेष्ठ व्याघ्र जैसे रूरू नामक मृगों के झुंडों में, घुसकर बड़ों-बड़ों को मार डालते हैं, उसी प्रकार योद्धाओं में अग्रगण्य पाण्डव युद्ध में एकत्र होकर कौरवों के प्रधान-प्रधान वीरों का वध कर डालेंगे। मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पुरूष से तिरस्कृत हुई नारी की भांति इस भरतवंशियों की सेना को विशाल बांहों-वाले वीर सात्यकि ने अपने अधिकार में करके रौंद डाला है और वह अब विपरीत दिशा की ओर अस्त-व्यस्त दशा में भागी जा रही हैं। मधुवंशी सात्यकि युधिष्ठिर के भरे-पूरे बल-वैभव को और भी बढा़ते हुए, जैसे किसान खेतों में बीज बोता है, उसी प्रकार समर-भूमि में बाण बिखरते हुए खडे़ होंगे। सेना में समस्त पाण्डव योद्धाओं के आगे भीमसेन खडे़ होंगे और समस्त योद्धा उन्हें भयरहित प्राकार (चहार-दीवारी) के समान मानकर उन्हीं का आश्रय लेंगे। जब तुम देखोगे कि भीमसेन ने पर्वताकार गजराजों के दांत तोड़ एवं कुभ्भस्थल विदीर्ण करके उन्हें रक्तरञ्चित दशा में धराशायी कर दिया है और वे रणभूमि में टूट-फूटकर गिरे हुए पर्वतों के समान दृष्टिगोचर हो रहे हैं, तब उन सब पर दृष्टिपात करके भीमसेन के स्पर्श से भी भयभीत होकर मेरी कही हुई बातों को याद करोगे। भीमसेन जब घोडे़, रथ और हाथियों से भरी हुई सारी कौरव-सेना को अपनी क्रोधाग्नि से दग्ध करने लगेंगे, उस समय अग्नि के समान उनका प्रबल वेग देखकर तुम्हें मेरी बातें याद आयेंगी ।।२६।। तुम लोगों पर बहुत बड़ा भय आने वाला है। मैं नहीं चाहता कि पाण्डवों के साथ तुम्हारा युद्ध हो। यदि हो गया तो तुम लोग भीमसेन की गदा से भारे जाकर सदा के लिये शान्त हो जाओगे। काटकर गिराये हुए विशाल वन की भांति जब तुम कौरव सेना को भीमसेन के द्वारा मार गिरायी हुई देखोगे, तब तुम्हें मेरे वचनोंका स्मरण हो आयेगा।
वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज जनमेजय! राज धृतराष्ट्र ने वहां बैठे हुए समस्त भूपालों से उपर्युक्त बातें कहकर उन्हें समझा-बुझाकर पुन: संजय से पूछा।
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