महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 60 श्लोक 12-23
षष्टितम (60) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)
‘जिसके पास उत्तम एवं दुर्धर्ष दिव्य गाण्डीव धनुष है, वरूण के दिये हुए बाणों से भरे दो दिव्य अक्षय तूणीर हैं, जिसका दिव्य वानर-ध्वज कहीं भी अटकता नहीं है- धूम की भांति अप्रितहत गति से सर्वत्र जा सकता है, समुद्रपर्यन्त समूची पृथ्वी पर जिसके रथ की समानता करने वाला दूसरा कोई रथ नहीं है, जिसके रथ का धर्धर शब्द सब लोगों को महान् मेघों की गर्जना के समान सुनायी पड़ता है तथा वज्र की गड़गड़ाहट के समान शत्रु सैनिकों के मन में भय का संचार कर देता है, जिसे सब लोग अलौकिक पराक्रमी मानते हैं, समस्त राजा भी जिसे युद्ध में देवताओं तक को पराजित करने में समर्थ समझते हैं, जो पलक मारते-मारते पांच सौ बाणों को हाथ में लेता, छोड़ता और दूरस्थ लक्ष्यों को भी मार गिराता हैं; किंतु यह सब करते समय कोई भी जिसे देख नहीं पाता है; जिसके विषय में भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, अश्र्वत्थामा, मद्रराज शल्य तथा तटस्थ मनुष्य भी ऐसा कहते हैं कि युद्ध के लिये खडे़ हुए शत्रुदमन नरश्रेष्ठ अर्जुन को पराजित करना अमानुषिक शक्ति रखने वाले भूमिपालों के लिये भी असम्भव है। जो एक वेग से पांच सौ बाण चलाता है तथा जो बाहुबल में कार्तवीर्य अर्जुन के समान है; इन्द्र और विष्णु के समान पराक्रमी उस महाधनुर्धर पाण्डुनन्दन अर्जुन को मैं इस महासमर में शत्रुसेनाओं का संहार करता हुआ-सा देख रहा हूं। ‘भारत! मैं दिन-रात यही सब सोचते-सोचते नींद नहीं ले पाता हूं। कुरूवंशियों में कैसे शान्ति बनी रहे?- इस चिन्ता से मेरा सारा सुख छिन गया है। कौरवों के लिये यह महान् विनाश का अवसर उपस्थित हुआ हैं। तात! यदि इस कलह का अन्त करने के लिये संधि के सिवा और कोई उपाय नहीं है तो मुझे सदा संधि की ही बात अच्छी लगती है; कुन्तीपुत्रों के साथ युद्ध छेड़ना ठीक नहीं है। मैं सदा पाण्डवों को कौरवों से अधिक शक्तिशाली मानता हूं।
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