महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 65 श्लोक 1-16
पञ्चषष्टितम (65) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)
धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझना
धृतराष्ट्र बोले-बेटा दुर्योधन! मैं तुमसे जो कुछ कहता हूं, उस पर ध्यान दो। तुम इस समय अनजान बटोही के समान कुमार्ग को भी सुमार्ग समझ रहे हो। यही कारण है कि तुम सम्पूर्ण लोकों के आधारस्वरूप पांच महाभूतों के पांचों पाण्डवों के तेज का अपहरण करने की इच्छा कर रहे हो। कुंतीनंदन युधिष्ठिर यहां उत्तम धर्म का आश्रय लेकर रहते हैं। तुम मूत्यु को प्राप्त हुए बिना उन्हें जीत लोगे, यह कदापि सम्भव नहीं है। जैसे वृक्ष प्रचण्ड आंधी को बतावे, उसी प्रकार तुम समराङ्गण में काल के समान विचरने वाले कुंतीकुमार भीमसेन को जिसके समान बलवान् इस भूतल पर दूसरा कोई नहीं है, डराने धमकाने का साहस करते हो। जैसे पर्वत में मेरू श्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त शस्त्रधारियों में गाण्डीवधारी अर्जुन श्रेष्ठ है। भला कौन बुद्धिमान् मनुष्य रणभूमि में उसके साथ जूझने का साहस करेगा? जैसे देवराज इन्द्र वज्र छोड़ते हैं, उसी प्रकार पाञ्चाल-राजकुमार धृष्टद्युम्र शत्रुओं की सेनापर बाणों की वर्षा करता है। वह अब किसे छिन्न-भिन्न नहीं कर डालेगा? अंधक और वृष्णिवंश का सम्माननीय योद्धा सात्यकि भी दुर्धर्ष वीर है। वह सदा पाण्डवों के हित में तत्पर रहता है। (युद्ध छिड़ने पर) वह तुम्हारी समस्त सेना का संहार कर डालेगा। जो तुलना में तीनों लोगों से भी बढ़कर हैं, उन कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण के साथ कौन समझदार मनुष्य युद्ध करेगा ?
श्रीकृष्ण के लिये एक ओर स्त्री, कुटुम्बीजन, भाई-बंधु, अपना शरीर ओर यह सारा भूमण्डल है, तो दूसरी ओर अकेला अर्जुन है (अर्थात् वे अर्जुन के लिये इन सबका त्याग कर सकते हैं)। जहां अपने मन और इन्द्रियों को संयम में रखने वाला दुर्धर्ष वीर पाण्डुपुत्र अर्जुन है, वही वसुदेवनंदन श्रीकृष्ण भी रहते हैं ओर जिस सेना में साक्षात् श्रीकृष्ण विराज रहे हों, उसका वेग समस्त भूमण्डल के लिये भी असह्य हो जाता है। तात! तुम सत्पुरूषों तथा तुम्हारे हित की बात बताने वाले सुहृदों के कथनानुसार कार्य करो। वृद्ध शांतनुनंदन भीष्म तुम्हारे पितामह हैं। तुम उनकी प्रत्येक बात सहन करो। मैं भी कौरवों के हित की ही बात सोचता हूं; अत: मेरी भी सुनो। आचार्यद्रोण, कृप, विकर्ण ओर महाराज बाह्लीक-ये भी तुम्हारे हितैषी ही है; अत: तुम्हें मेरे ही समान इनका भी समादर करना चाहिये। भरतनंदन! ये सब लोग धर्म के ज्ञाता हैं और दोनों पक्ष के लोगों पर समानभाव से स्नेह रखते हैं। विराटनगर में तुम्हारे भाइयोंसहित जो सारी सेना युद्ध के लिये गयी थी, वह वहां की समस्त गौओं को छोड़कर अत्यंत भयभीत हो तुम्हारे सामने ही भाग खड़ी हुई थी। उस नगर में जो एक (अर्जुन्) का बहुतों के साथ अत्यंत अद्भुत युद्ध हुआ सुना जाता है; वह एक ही दृष्टांत (उसकी प्रबलता और अजेयता के लिये) पर्याप्त है। देखों, जब अकेले अर्जुन ने इतना अद्भुत कार्य कर डाला, तब वे सब भाई मिलकर क्या नहीं कर सकते? अत: तुम पाण्डवों को अपना भाई ही समझो और उनकी वृत्ति (स्वत्व) उन्हें देकर उनके साथ भ्रातृत्व बढ़ाओ।
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