महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 73 श्लोक 35-42
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त्रिसप्ततितम (73) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
वहाँ पहुँच कर आपके स्वार्थ की सिद्धि में तनिक भी त्रुटि न आने देते हुए मैं समस्त कौरवों से संधि-स्थापन के लिए प्रयत्न करूंगा और उनकी चेष्टाओं पर दृष्टि रखूँगा । भारत ! मैं जाकर कौरवों की युद्ध विषयक तैयारी की बातें जान-सुनकर आपकी विजय के लिए पुन: यहाँ लौट आऊँगा ॥ मुझे तो शत्रुओं के साथ सर्वथा युद्ध होने की संभावना हो रही है, क्योंकि मेरे सामने ऐसे ही लक्षण ( शकुन ) प्रकट हो रहे हैं । मृग ( पशु ) और पक्षी भयंकर शब्द कर रहे हैं । प्रदोष काल में प्रमुख हाथियों और घोड़ों के समुदाया में बड़ी भयानक आकृतियाँ प्रकट होती हैं । इसी प्रकार अग्निदेव भी नाना प्रकार के भयजनक वर्णों ( रंगों ) को धारण करते हैं। यदि मनुष्यलोक का संहार करनेवाली अत्यंत भयंकर मृत्यु इनको नहीं प्राप्त हुई होती, तो ऐसी बातें देखने में नहीं आती । अत: नरेंद्र ! आपके समस्त योद्धा युद्ध के लिए दृढ़ निश्चय करके भाँति भाँति के शस्त्र, यंत्र, कवच, रथ, हाथी और घोड़ों को सुसज्जित कर लें तथा उन हाथियों, घोड़ों, एवं रथों पर सवार हो युद्ध करने के निमित्त सदा तैयार रहें । इसके सिवा आपको युद्धोउपयोगी जिन समस्त वस्तुओं का संग्रह करना है उन सबका भी आप संग्रह कर लीजिये ॥ पाण्डवप्रवर ! नरेश्वर ! यह निश्चय मानिये, आपके पास पहले जो समृद्धिशाली राज्य-वैभव था और जिसे आपने जुए में खो दिया था, वह सारा राज्य अब दुर्योधन अपने जीते-जी आपको कभी नहीं दे सकता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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