महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 81 श्लोक 1-9
एकाशीति (81) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
युद्ध के लिए सहदेव तथा सात्यिकी की सम्मति और समस्त योद्धाओं का समर्थन
सहदेव बोले – शत्रुदमन श्रीकृष्ण ! महाराज युधिष्ठिर ने यहाँ जो कुछ कहा है, यह सनातन धर्म है, परंतु मेरा कथन यह है कि आपको ऐसा प्रयत्न करना चाहिए जिससे युद्ध होकर ही रहे दशार्हनन्दन ! यदि कौरव पांडवों के साथ संधि करना चाहें, तो भी आप उनके साथ युद्ध की ही योजना बनाइयेगा । श्रीकृष्ण ! पाञ्चालराजकुमारी द्रौपदी को वैसी दशा में सभा के भीतर लायी गयी देखकर दुर्योधन के प्रति बढ़ा हुआ मेरा क्रोध उसका वध किए बिना कैसे शांत हो सकता है ? श्रीकृष्ण ! यदि भीमसेन, अर्जुन तथा धर्मराज युधिष्ठिर धर्म का ही अनुसरण करते हैं तो मैं उस धर्म को छोड़कर रणभूमि में दुर्योधन के साथ युद्ध ही करना चाहता हूँ ।
सात्यिकी ने कहा – माहाबहो ! परम बुद्धिमान् सहदेव ठीक कहते हैं । दुर्योधन के प्रति बढ़ा हुआ मेरा क्रोध उसके वध से ही शांत होगा। क्या आप भूल गए हैं; जब कि वन में वल्कल और मृगचर्म धारण करके दुखी हुए पांडवों को देखकर आपका भी क्रोध उमड़ आया था ?अत: पुरुषोत्तम ! युद्ध में कठोरता दिखाने वाले माद्री-नन्दन शूरवीर सहदेव ने जो बात कही है, वही हम सम्पूर्ण योद्धाओं का मत है ।
वैशम्पायन जी कहते हैं – जनमजेय ! परम बुद्धिमान् सात्यिकी के ऐसा कहते ही वहाँ सब ओर से समस्त योद्धाओं का अत्यंत भयंकर सिंहनाद शुरू हो गया ॥8॥ युद्ध की इच्छा रखनेवाले उन सभी वीरों ने साधु-साधु कहकर सात्यिकी का हर्ष बढ़ाते हुए उनके वचन की सर्वथा भूरी-भूरी प्रशंसा की
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