महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 9 श्लोक 19-37

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नवम (9) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-37 का हिन्दी अनुवाद

यधिष्ठर ! तब परम बुद्धिमान इन्द्र ने अप्सराओं का आदर-सत्कार करके उन्हें विदा कर दिया वे त्रिशिरा के वध का उपाय सोचने लगे। प्रतापी वीर बुद्धिमान देवराज इन्द्र चुपचाप सोचते हुए त्रिशिरा के विषय में एक निश्चय पर पहुँच गये। ( उन्होंने सोचा)आज मै त्रिशिरा पर वज्र का प्रहार करूँगा जिससे वह तत्काल नष्ट हो जायेगा । बलवान् पुरूष को दर्बल होने पर भी बढ़ते हुए अपने शत्रु की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। शास्त्रयुक्त बुद्धि से त्रिशिरा के वध का दृढ़ निश्चय करके क्रोध में भरे हुए इन्द्र ने अग्नि के समान तेजस्वी, धोर एवं भयेरि वज्र को त्रिशिरा की ओर चला दिया । उस वज्र की गहरी चोट खाकर त्रिशिरा मरका पृथ्वी पर गिर पडे़, मानो वज्र के अधात से टुटा हुआ पर्वत का शिखर भूतल पर पड़ा हो। त्रिशिरा को वज्र के प्रहार से प्राणशून्य होकर पर्वत की भाँति पृथ्वी पर पड़ा देखकर भी देवराज इन्द्र को शान्ति नहीं मिली । वे उनके तेज से संतत हो रहे थे। क्योंकि मारे जाने पर भी अपने तेज से उद्दीप्त होकर जीवित-से दिखायी देते थे । युद्ध में मारे हुए त्रिशिरा के तीनों सिर जीते-जागते से अöुत प्रतीत हो रहे थे। इससे अत्यन्त भयभीत हो इन्द्र भारी सोच-विचार में पड़ गये । इसी समय एक बढ़ई कंधे पर कुल्हाणी लिये उधर आ निकला। महाराज ! वह बढई उसी वन में आया, जहाँ त्रिशिरा को मार गिराया गया था । डरे हुए शचिपति इन्द्र ने वहाँ अपना काम करते हुए बढई को देखा । देखते ही पाकशसन इन्द्र ने तुरेत उससे कहा-बढ़ई ! तू शीघ्र इस शव के तीनों मस्तकों के टुकडें-टुकडें कर दे । मेरी इस आज्ञा का पालन कर। बढ़ई ने कहा-इसके कंधे तो बड़े भारी और विशाल है । मेरी यह कुल्हाडी इस पर काम नहीं देंगी और अस प्रकार किसी प्राणी की हत्या करना तो साधु पुरुषों-द्वारा निन्दत पापकर्म है, अतः मै इसे नहीं कर सकूँगा। इन्द्र ने कहां--बढई ! तू भय न कर । शीघ्र मेरी इस आज्ञा का पालन कर । मेरे प्रसाद से तेरी यह कुल्हाडी वज्र के समान हो जायेगी। बढ़ई ने पूछा-आज इस प्रकार भयानक कर्म करने वाले आप कोन है, यह कैस समझूँ १ मै आपका परिचय सुनना चाहता हूँ । यह यथार्थ रूप् से बताइय।

इन्द्र ने कहा--बढई ! तुझे मालूम होना चाहिये कि मै देवराज इन्द्र हूँ । मैने जो कुछ कहा है, उसे शीघ्र पूरा कर । इस विषय में कुछ विचार न कर। बढ़ई ने कहा--देवराज ! इस क्रूर कर्म से आपको यहाँ लज्जा कैसे नहीं आती है? इस ऋषि कुमार की हत्या करने से बह्महत्या का पाप लगेगा क्या उसका भय आपको नहीं है।

इन्द्र ने कहा--यह मेरा महान शक्तिशाली शत्रु था, जिसे मैने वज्र से मार डाला है । इसके बाद ब्रह्महत्या से अपनी शुद्धि करने के लिये मै किसी ऐसे धर्म का अनुष्ठान करूँगा जो दूसरो के लिये अत्यन्त दुष्कर हो। बढ़ई ! यद्यपि यह मारा गया है, तो भी अभीतक मुझे इसका भय बना हुआ है । तू शीघ्र इसके मस्तकों के टुकडे-टुकडे कर दे । मै तैरे उपर अनुग्रह करूँगा। मनुष्य हिंसा प्रधान तामस यज्ञों में पशु का सिर तेरे भाग के रूप में देंगे । बढई ! यह तेरे ऊपर मेरा अनुग्रह है अब तू जल्दी मेरा प्रिय कार्य कर।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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