महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 16 श्लोक 42-51
षोडश (16) अध्याय: कर्ण पर्व
गाण्डीव,धनुष से छूटे हुए नाना प्रकार के बाण रणभूमि में एक कोस से अधिक दूरी पर खड़े हुए हाथियों और मनुष्यों को भी मार डालते थे। जैसे जंगल में कुल्हाड़ों से काटने पर बड़े-बड़े वृक्ष धराशायी हो जाते हैं,उसी प्रकार वहाँ मद की वर्षा करने वाले गजराजों के शुण्डदण्ड भल्लों से कट-कटकर धरती पर गिरने लगे। सूँड़ कटने के पश्चात् वे पर्वतों के समान हाथी अपने सवारों सहित उसी प्रकार गिर जाते थे ? जैसे वज्रधारी इन्द्र के वज्र से विदीर्ण होकर गिरे हुए पहाड़ों के ढेर लगे हों। धनंजय अपने बाणों द्वारा सुशिक्षित घोड़ों से जुते हुए,रण दुर्मद रथियों की सवारी में आये हुए एवं गन्धर्व नगर के समान आकार वाले सुसज्जित रथों के टुकड़े-टुकड़े करते हुए शत्रुओं पर बाण बरसाते और सजे-सजाये घुड़सवारों एवं पैदलों को भी मार गिराते थे। अर्जुन रूपी प्रलयकालिक सूर्य ने जिसका शोषण करना कठिन था ? ऐसे संशप्तक-सैन्य रूपी महासागर को अपनी बाण मयी प्रचण्ड किरणों से सोख लिया। जैसे वज््राधारी इन्द्र ने पर्वतों को विदीर्ण किया था,उसी प्रकार अर्जुन ने महान् वेगशाली वज्रतुल्य नाराचों द्वारा अश्वत्थामा रूपी महान् शैल को पुनः वेधना आरम्भ किया। तब क्रोध में भरा हुआ आचार्य पुत्र सारथि श्रीकृण सहित अर्जुन के साथ युद्ध करेन की इच्छा से बाणों द्वारा उनके सामने उपस्थित हुआ;परन्तु कुन्ती कुमार अर्जुन ने उसके सभी बाण काट गिराये ।। तदनन्तर अत्यन्त कुपित हुआ अश्वत्थामा पाण्डुपुत्र अर्जुन को उसी प्रकार अपने अस्त्र एर्पित करने लगा,जैसे कोई गृहस्थ योग्य अतिथि को अपना सारा घर सौंप देता है। तब पाण्डुपुत्र अर्जुन संशप्तकों को छोड़कर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के सामने आये । ठीक उसी तरह,जैसे दाता पंक्ति में बैठने के अयोग्य ब्राह्मणों को छोड़कर याचना करने वाले पंक्तिपावन ब्राह्मण की ओर जाता है। इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में अश्वत्थामा और अर्जुन का संवाद विष्यक सोलहवाँ अध्याय पुरा हुआ।
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