महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 20 श्लोक 48-51
विंश (20) अध्याय: कर्ण पर्व
जिसका मुख मण्डल पूर्ण चन्द्रमा के सदृश प्रकाशमान तथा नेत्र क्रोध के कारण अरुणा वर्ण थे,जिसकी नासिका ऊँची थी,वह पाण्ड्य राज का कुण्डल मण्डित मस्तक पृथ्वी पर गिरकर भी दो नक्षत्रों के बीच में विराजमान चन्द्रमा के समान सुशोभित हो रहा था। युद्ध कुशल अश्वत्थामा ने पाँच उत्तम बाण मारकर उस हाथी के छः टुकड़े कर दिये। इस प्रकार दोनों मिलाकर दस भाग कर दिये । जैसे कि कर्म निपुण पुराहित दस हविर्धान यज्ञ में इन्द्र आदि दस देवताओं के लिए हविध्य के दस भाग कर देता है। जैसे पितरों की प्रिय चिताग्नि मृत शरीर को पाकर प्रज्वलित हो जल उठती है और अन्त में जल का अभिषेक पाकर शान्त हो जाती है,उसी प्रकार पाण्ड्य नरेश घोड़े,हाथी और मनुष्यों के टुकड़े-टुकड़े करके उन्हें प्रचुर मात्रा में राक्षसों के भोजन देकर अनत में अश्वत्थामा के बाण से सदा के लिए शान्त हो गये। जिसने पूरी विद्या समाप्त कर ली है तथा समस्त कर्तव्य कर्म पूर्ण कर लिये हैं,उस गुरु पुत्र अश्वत्थामा के पास सुहृदों सहित आकर आपके पुत्र दुर्योधन ने प्रसन्नता पूर्वक उसकी बड़ी पूजा की । ठीक उसी तरह,जैसे बलि के पराजित होने पर देवराज इन्द्र ने विष्णु का पूजन किया था।
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